- झारखंड में दो चरण में 13 और 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव हैं, राज्य में अभी झामुमो के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सरकार है
दैनिक उजाला डेस्क : झारखंड में दो चरण में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। 13 और 20 नवंबर को झारखंड के मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। तमाम पार्टियां चुनावी परीक्षा में जाने से पहले अपने चेहरों को चुनने के लिए मंथन कर रही हैं। दिल्ली से लेकर झारखंड तक बैठकों को दौर जारी है। फिलहाल, एनडीए के दल भाजपा और आजसू तो दूसरी ओर कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है।
2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है। झारखंड ने बीते पांच साल में दो व्यक्तियों को तीन बार मुख्यमंत्री बनते देखा है। साल 2000 में झारखंड के गठन के बाद यहां भाजपा या झामुमो के नेतृत्व में ज्यादातर सरकारें बनी हैं। 24 साल में 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं। इन सरकारों का नेतृत्व सात अलग-अलग व्यक्तियों ने किया है।
झारखंड में पहली सरकार कैसे बनी थी?
लंबे समय तक बिहार का हिस्सा रहा झारखंड 15 नवंबर 2000 को भारत का 28वां राज्य बना। साल 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान संसद ने बिहार पुनर्गठन अधिनियम के जरिए झारखंड का निर्माण किया था। उस वर्ष की शुरुआत में बिहार में हुए चुनाव के आधार पर झारखंड की पहली विधानसभा के गठन का आधार बना। इन चुनावों के आधार पर भाजपा ने सहयोगियों के साथ मिलकर राज्य में पहली सरकार बनाई। 15 नवंबर 2000 को बाबूलाल मरांडी ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
मुख्यमंत्री बनने से पहले मरांडी दूसरी और तीसरी वाजपेयी सरकार में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री रह चुके थे। उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया और मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए विधानसभा उपचुनाव जीता। मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल ढाई साल तक चला। मरांडी की जगह उनके मंत्रिमंडल में भाजपा के एक मंत्री अर्जुन मुंडा आए, जो झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बने। मुंडा 2005 में पहली विधानसभा के कार्यकाल के अंत तक मुख्यमंत्री बने रहे। अर्जुन मुंडा तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
पहले विधानसभा चुनाव में क्या हुआ था?
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए 2005 में राज्य में पहली बार चुनाव हुए। जब नतीजे सामने आए तो सत्ताधारी भाजपा और उसका गठबंधन 41 सीटों के जादुई आंकड़ों से पिछड़ गया। भारतीय जनता पार्टी को 23.57% मत के साथ सबसे ज्यादा 30 सीटें आईं। इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा को 17 सीटें और 14.29% मत हासिल किए। नौ सीटें जीतकर कांग्रेस तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसे 12.05% वोट मिले। अन्य दलों की बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल के सात, जदयू के छह और आजसू के दो उम्मीदवार जीते। इसके अलावा निर्दलीय और अन्य दलों के कुल 10 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे।
इस तरह से झारखंड की जनता ने किसी एक राजनीतिक दल को सरकार बनाने का जनादेश नहीं दिया। झामुमो के नेता शिबू सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया, लेकिन आवश्यक संख्या नहीं जुटा सके। इसलिए सीएम के रूप में शपथ लेने के 10 दिन के भीतर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद अर्जुन मुंडा ने भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया और मार्च 2005 में दूसरी बार सीएम बने।
हालांकि, अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली सरकार केवल डेढ़ साल तक ही चल पाई। गठबंधन के टूटने के कारण सितंबर 2006 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद जेएमएम के समर्थन वाली एक और गठबंधन सरकार ने राज्य की सत्ता संभाली। झारखंड में पहली बार सरकार का नेतृत्व एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने किया। कोड़ा जब सीएम बने तब उनकी उम्र करीब 35 साल थी। कोड़ा सरकार को झामुमो और अन्य दलों का समर्थन हासिल था। करीब दो साल बाद झामुमो ने समर्थन वापस ले लिया और मधु कोड़ा की सरकार गिर गई। इसके बाद झामुमो के नेता शिबू सोरेन अगस्त 2008 में दूसरी बार सीएम बने। सोरेन जब सीएम बने, तो वे लोकसभा सांसद थे। सीएम बने रहने के लिए शिबू सोरेन को उपचुनाव लड़ना पड़ा। जनवरी 2009 में सोरेन उपचुनाव हार गए, जिसके चलते उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा और राजनीतिक अनिश्चितता के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। दिसंबर 2009 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन जारी रहा, जब झारखंड में दूसरी बार चुनाव हुए।
कई बार सरकारें बनीं और गिरीं
2009 में राज्य में दूसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। जब नतीजे सामने आए तो कोई भी दल 41 सीटों के जादुई आंकड़े को नहीं छू पाया। भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा 20.18% मत के साथ 18 सीटें आईं। झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी 18 सीटें मिलीं लेकिन इसने 15.20% मत हासिल किए। 14 सीटें जीतकर कांग्रेस तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसे 16.16% वोट मिले। बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के 11 विधायक चुनकर आए और इसे 8.99% मत मिले।
अन्य दलों की बात करें तो राजद और आजसू के पांच-पांच और जदयू के दो उम्मीदवार जीते। इसके अलावा निर्दलीय और अन्य दलों के कुल आठ प्रत्याशी चुनाव जीते।
खंडित जनादेश के कुछ महीनों बाद झामुमो, भाजपा ने अन्य दलों के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई, जिसका नेतृत्व शिबू सोरेन ने किया। सोरेन का तीसरा कार्यकाल करीब पांच महीने (दिसंबर 2009-मई 2010) तक चला और भाजपा ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
कुछ समय तक राष्ट्रपति शासन रहने के बाद सितंबर 2010 में भाजपा के अर्जुन मुंडा तीसरी बार सीएम बने। लेकिन अर्जुन मुंडा सरकार का तीसरा कार्यकाल जनवरी 2013 में ही समाप्त हो गया। राष्ट्रपति शासन हटने के बाद शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन सीएम बने। झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के नेतृत्व वाली सरकार डेढ़ साल तक चली।
पहली बार किसी सरकार ने कार्यकाल पूरा किया
2014 के नवंबर में राज्य में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। 81 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने सबसे अधिक 37 सीटें जीतीं जिसने 31.26% वोट हासिल किए। इसके बाद झामुमो को 17 सीटें मिलीं इसके खाते में 20.43% मत गए। आठ विधायकों के साथ झाविमो (प्रजातांत्रिक) तीसरे स्थान पर रही जिसके पास 9.99% वोट गए। कांग्रेस के 10.46% वोट के साथ छह विधायक तो आजसू के 3.68% वोट के साथ पांच विधायक जीते। इसके अलावा छह अन्य विधायक भी चुनकर विधानसभा पहुंचे।
भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुबर दास ने दिसंबर 2014 में बतौर सीएम शपथ ली। उनकी सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
पिछले चुनाव में क्या हुआ था?
झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव 30 नवंबर से 20 दिसंबर 2019 के बीच पांच चरणों में हुए थे। इसमें कुल 65.18 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था। नतीजे 23 दिसंबर 2019 को घोषित किए गए। जब नतीजे सामने आए तो सत्ताधारी भाजपा को झटका लगा और वह 41 सीटों के जादुई आंकड़ों से पिछड़ गई। हेमंत सोरेन की पार्टी झामुमो को सबसे ज्यादा 30 सीटें आईं और इसे 18.72% वोट मिले। इसके बाद भाजपा को 25 सीटें मिलीं जिसने 33.37% मत हासिल किए। अन्य दलों की बात करें तो कांग्रेस के 16 विधायक (13.88% वोट), झाविमो के तीन (5.45% वोट) और आजसू के दो विधायक (8.1% वोट) जीते। इसके अलावा दो निर्दलीय विधायक जबकि राजद, भाकपा (माले) और एनसीपी के एक-एक विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे।
राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी
हार के बाद भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे रघुबर दास ने इस्तीफा दे दिया। झामुमो के नेतृत्व में राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी। इस सरकार में झामुमो को कांग्रेस, राजद, सीपीआई (एमएल) और एनसीपी का साथ मिला। इसके अलावा झाविमो प्रमुख और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी हेमंत सोरेन सरकार को अपनी पार्टी का समर्थन दे दिया। इसके बाद 29 दिसंबर को झामुमो विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।