- विदेश में पढ़ने पर भारतीय अरबों रुपये खर्च करते हैं।
- हर साल लाखों भारतीय विदेश में एडमिशन ले रहे हैं।
दैनिक उजाला, एजुकेशन डेस्क : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में भारतीय छात्रों की विदेश में पढ़ाई करने वाले प्रवृत्ति की तुलना एक ‘बीमारी’ से कर दी। इसे लेकर काफी ज्यादा विवाद भी खड़ा हुआ। धनखड़ ने कहा कि छात्र ये नहीं देख रहे हैं कि वे किस संस्थान में एडमिशन ले रहे हैं, बस वे विदेश जाना चाहते हैं। उपराष्ट्रपति ने ‘विदेशी मुद्रा निकासी’ यानी विदेशी धन का खर्च होने की भी बात की। उन्होंने बताया कि 2024 में ही 13 लाख छात्रों ने 6 अरब डॉलर खर्च किए।
उपराष्ट्रपति ने बताया कि इस वजह से देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है, क्योंकि विदेशी मुद्रा बाहर खर्च हो रही होती है। विदेश में पढ़ने का जिक्र करते हुए उन्होंने ‘प्रतिभा पलायन’ की भी बात की। उन्होंने भारतीय छात्रों से आग्रह किया कि वे बाहर पढ़ने जाने को लेकर ‘भेड़चाल’ से बचें। उपराष्ट्रपति ने जोर दिया कि इस मुद्दे पर काम करने की जरूरत है। आइए जानते हैं कि क्या सच में विदेश में पढ़ना बीमारी या फिर देश में एक बड़े संकट की वजह से ऐसा हो रहा है।
विदेश में पढ़ाई का अर्थव्यवस्था पर असर
विदेश में पढ़ने जाने वाले छात्रों को ट्यूशन फीस, आवास और रहने के अन्य खर्चों का भुगतान के करने के लिए भारतीय रुपये (INR) को अमेरिकी डॉलर (USD), ब्रिटिश पाउंड (GBP) या यूरो (EUR) जैसी विदेशी मुद्राओं में बदलना पड़ता है। विदेशी मुद्रा की बढ़ती मांग की वजह से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होती है। अगर ऐसा लगातार होता है तो इससे देश का व्यापार असंतुलन बढ़ने का खतरा पैदा हो जाता है। रुपये के कमजोर होने से इसका खतरा और भी ज्यादा हो जाता है। विदेश में पढ़ने के लिए लगातार पैसा बाहर जाने से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो सकता है, जिसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
विदेश में पढ़ने से देश और छात्रों का फायदा
भारतीय छात्रों के विदेश में पढ़ने से फायदा भी होता है। ज्यादातर छात्रों को विदेश में पढ़ाई पूरी करने के बाद वहीं नौकरी मिल जाती है। फिर वह भारत में पैसा भेजना शुरू कर देते हैं। रेमिटेंस यानी प्रेषण के तौर पर आने वाला ये पैसा भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने का काम करता है। 2023 में भारत को दुनियाभर में मौजूद अपने प्रवासियों के जरिए 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा पैसा हासिल हुआ। ये पैसा देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद ही जरूरी रहा है।
सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि विदेश में पढ़ाई करने पर छात्रों को बढ़िया एक्सपोजर मिलता है। उन्हें ऐसी स्किल और एक्सपीरियंस मिलता है, जो भारत में मौजूद नहीं है। जब वे भारत लौटते हैं, तो उनके पास ऐसी नॉलेज, स्किल और ग्लोबल नेटवर्क होता है, जिससे भारतीय वर्कफोर्स को फायदा पहुंचता है। विदेश में पढ़कर आने वाले भारतीय इनोवेशन और एंटरप्रेन्योर को बढ़ावा देते हैं। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर अच्छा खासा असर दिखता है।
भारतीयों के विदेश में पढ़ने की तुलना ‘भेड़चाल’ से की गई है। इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि विदेश में पढ़ाई अब एक स्टेटस सिंबल बन चुका है। कई बार पैरेंट्स-स्टूडेंट्स ऐसे संस्थानों को पढ़ने के लिए चुन लेते हैं, जिनकी रैंकिंग अच्छी नहीं होती है। उनका जोर सिर्फ विदेशी डिग्री हासिल करने पर होता है। हालांकि, यहां ये समझने की जरूरत है कि आखिर ये मानसिकता क्यों पनप रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत का एजुकेशन सिस्टम में पैदा होने वाली चुनौतियां हैं।
देश में आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान तो मौजूद हैं, लेकिन उनमें अवसर सीमित हैं। सीट की संख्या कम है और मांग ज्यादा। यही वजह है कि बहुत से छात्र क्वालिटी एजुकेशन के लिए विदेश का रुख करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि विदेश से पढ़ने पर अच्छी नौकरी लगने की संभावना ज्यादा होती है। उन्हें भारत के मुकाबले ज्यादा सैलरी मिलती है, जबकि अगर वे देश में पढ़ते तो शायद उन्हें उतना वेतन नहीं मिल पाता है, जितना वो विदेश में कमा रहे हैं।
इन वजहों से भी विदेश पढ़ने जा रहे छात्र
भारत के टॉप संस्थानों में सीटों की संख्या कम है। ये बात किसी से छिपी नहीं है। कई बार कॉम्पिटिशन इतना ज्यादा होता है कि प्रतिभाशाली छात्रों को भी एडमिशन नहीं मिल पाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, अगर ऐसे छात्र जब किसी टियर 2 या 2 कॉलेज में एडमिशन लेते हैं, तो उन्हें ना तो बढ़िया इंफ्रास्ट्रक्चर मिलता है और ना ही अच्छे रिसर्च का माहौल। यही वजह है कि वे ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च कर विदेश जाने का रुख कर लेते हैं। कुछ ऐसे भी कोर्स होते हैं, जो भारत में ज्यादा बढ़िया ढंग से नहीं पढ़ाए जाते हैं।
हालांकि, विदेश की यूनिवर्सिटीज में ना सिर्फ छात्रों को बढ़िया रिसर्च का माहौल मिलता है, बल्कि उन्हें कई सारे ऐसे कोर्स पढ़ने को मिलते हैं, जो वे शायद भारत में नहीं पढ़ पाते। इसके अलावा एक बड़ा कारण ये है कि भारत के कुछ टॉप संस्थानों में जितनी फीस है, उतने में विदेश में भी पढ़ाई की जा सकती है। मेडिकल के कोर्सेज में तो ये सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है। हाल के सालों में भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया और यहां तक कि ईरान भी गए हैं।