झांसी : झांसी अग्निकांड मामले में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य को हटा दिया गया है। 3 अन्य जिम्मेदारों को सस्पेंड किया गया है। डिप्टी CM ब्रजेश पाठक के निर्देश पर गठित चार सदस्यीय कमेटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर बुधवार दोपहर यह फैसला लिया गया।

मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 15 नवंबर को 10 बच्चे जिंदा जल गए थे। 26 नवंबर तक कुल 18 बच्चे दम तोड़ चुके हैं।

जांच रिपोर्ट के आधार पर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर को पद से हटा दिया गया है। उन्हें चिकित्सा शिक्षा विभाग के महानिदेशालय से संबद्ध किया गया है। साथ ही मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (CMS) डॉ. सचिन माहोर को आरोप पत्र दिया गया है। कॉलेज के अवर अभियन्ता (विद्युत) संजीत कुमार, NICU वार्ड की नर्सिंग सिस्टर इंचार्ज संध्या राय और मेडिकल कॉलेज की प्रमुख अधीक्षक डॉ. सुनीता राठौर को सस्पेंड किया गया है।

यह फोटो झांसी जिला प्रशासन ने जारी करके बताया कि मेडिकल कॉलेज अग्निकांड में 10 बच्चों की मौत हुई हैं। फोटो वीभत्स है, इसलिए हम इसे बिलर करके दिखा रहे हैं।

यह फोटो झांसी जिला प्रशासन ने जारी करके बताया कि मेडिकल कॉलेज अग्निकांड में 10 बच्चों की मौत हुई हैं। फोटो वीभत्स है, इसलिए हम इसे बिलर करके दिखा रहे हैं।

कमिश्नरी जांच के आदेश

मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ओमशंकर चौरसिया, सर्जरी विभाग के सह-आचार्य डॉ. कुलदीप चंदेल और विद्युत प्रभारी अधिकारी की भूमिका की जांच के लिए कमिश्नर झांसी को जिम्मा सौंपा है।

अब तीनों आरोपियों के किरदार जानते हैं…

झांसी महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज 9 एकड़ में फैला है। प्रदेश के सबसे पुराने चिकित्सा संस्थानों में इसका नाम है। यह बुंदेलखंड का सबसे बड़ा उपचार केंद्र है, जहां यूपी के अलावा मध्य प्रदेश के लोग भी इलाज के लिए आते हैं।

झांसी मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन की पूरी जिम्मेदारी प्रिंसिपल के कंधों पर होती है। प्रिंसिपल डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर को पद से हटा दिया गया है। डॉ. सेंगर के पास यह जिम्मेदारी है। हर छोटी-बड़ी समस्या की रिपोर्ट इनके पास जाती है। लगभग 10 से 15 दिन में प्रिंसिपल हॉस्पिटल का विजिट भी करते हैं। पिछले कई दिनों से एसएनसीयू वार्ड में क्षमता से अधिक बच्चों को रखा जा रहा था।

प्राथमिक जांच रिपोर्ट में भी ये सामने आया है कि 18 वेंटिलेटर पर 49 बच्चे एडमिट थे। किसी बेड पर 3 तो किसी पर 4 बच्चों को ऑक्सीजन दी जा रही थी। इससे इन्फेक्शन का खतरा तो था ही, बच्चों को आग से बचाने में भी दिक्कत हुई। एक साथ एक-एक वेंटिलेटर पर 3 से 4 बच्चे झुलस गए।

अगर तय मानकों के अनुसार बच्चों को रखा जाता तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता। प्रिंसिपल को मानक से ज्यादा बच्चों को भर्ती करने पर रोक लगानी चाहिए थी। लेकिन, उन्होंने ओवर लोडिंग नहीं रोकी।

मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के दूसरा अहम आरोपी डॉ. सचिन माहोर हैं। CMS डॉ. सचिन माहोर को आरोप पत्र दिया गया है। वार्ड में उनकी अक्सर विजिट होती है। वार्ड में कितने बच्चे हैं, किस बच्चे को क्या ट्रीटमेंट मिल रहा है, क्या समस्या है, इसकी फाइनल रिपोर्ट इनके पास ही सब्मिट होती है। लेकिन, डॉ. सचिन जब घटना वाले दिन अस्पताल पहुंचे, तब उन्हें यह तक नहीं पता था कि वार्ड में कितने बच्चे हैं?

मीडिया को पहला बयान दिया कि यहां 54 बच्चे भर्ती हैं। जिलाधिकारी ने उनके बयान का खंडन किया। बताया कि 49 बच्चे भर्ती थे। सीएमएस ने बताया- 5.30 बजे हादसा हुआ, जबकि प्रशासन ने बताया- करीब 10.30 बजे आग लगी।

अब बड़ा सवाल-

5 बच्चों का अंतर कैसे आ सकता है? इसके अलावा वार्ड में बच्चों की ओवर लोडिंग की वजह से वेंटिलेटर्स को लगातार चलाया जा रहा था। यहां की वायरिंग पुरानी हो चुकी थी, इससे वायरिंग में बार-बार फाल्ट आ रही थी। प्राथमिक जांच में ये पता चला है कि वायरिंग कमजोर होने की वजह से स्पार्किंग के मामले पहले भी सामने आ चुके थे। कई वेंटिलेटर्स को एक्सटेंशन से चलाया जाता है, जो बहुत जल्दी गर्म हो जाता है। लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया गया।

बाल रोग विभाग की पूरी जिम्मेदारी एचओडी डॉ. ओम शंकर चौरसिया की है। डॉ. ओमशंकर चौरसिया की भूमिका की अब जांच की जा रही है। विभाग में डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ की ड्यूटी लगाना। वार्ड की क्षमता चेक करना, मेंटेनेंस से जुड़ी प्रॉब्लम को सॉल्व करना, ट्रीटमेंट के साथ-साथ यह पूरी जिम्मेदारी भी इनकी है।

इन सब जिम्मेदारियों के बीच बड़ी खामी यह निकलकर आई कि यहां एक्सपायर हो चुके सिलेंडर लगे हुए थे। इनकी रिफिलिंग ही नहीं की गई। यहां तक कि वार्ड का फायर अलार्म तक नहीं बजा।

पीड़ितों ने यह बताया कि हम वहीं पर लेटे थे, लेकिन कोई फायर अलार्म नहीं सुनाई दिया। इसके अलावा एसएनसीयू वार्ड का पिछला गेट काफी समय से बंद करवा दिया गया था। अगर वह गेट खुला होता तो इतने बच्चों की मौत नहीं होती।

प्राथमिक जांच में यह भी सामने आया है कि मेडिकल स्टाफ यहां कमजोर वायरिंग और ओवर लोड के बारे में विभागाध्यक्ष को बता चुका था। लेकिन, उसे गंभीरता से नहीं लिया गया। इसके पीछे का कारण नई बिल्डिंग का निर्माण होना बताया जा रहा है।

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