मथुरा, दैनिक उजाला लाइव डेस्क :
वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया 29 अप्रैल, दिन रविवार था। यह दिन हिंदुओं में अक्षय पुण्य तिथि का माना जाता है। इस दिन महान क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप जी ने गोलोक को प्रस्थान किया था। आज पूरा देश राजा महेंद्र प्रताप की 44 वीं पुण्यतिथि मनाते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। उस दिव्य आत्मा का आगमन इस पृथ्वी लोक पर 01 दिसंबर सन 1886 ई को हुआ था। उस समय कोई नहीं जानता था कि यह दिव्य पुरुष महादानी, महात्यागी, महान देशभक्त, समाजसेवी व बड़े शिक्षाविद के रूप में विख्यात होगा।
दो-दो रियासतों के मालिक
राजा साहब पर दो रियासतों का भार था। वे चाहते तो अन्य राजा- महाराजाओं की तरह आनंद से जीवन की समरसता में मग्न होकर सुख-सुविधाओं व खुशियों का आनंद लेते परंतु संत हृदय महेंद्र प्रताप जी को देश की गुलामी इतनी अखरने लगी कि वे मां भारती को स्वतंत्र कराने के लिए तन मन धन से समर्पित हो गए। सबसे पहले उन्होंने देखा कि मेरे देश में शिक्षा का अभाव है, तो उन्होंने अपनी रियासत के सुंदर महल, बाग, बगीचे सभी उत्तम शिक्षण संस्थान खोलने के लिए के लिए दान कर दिए। अलीगढ़, हाथरस, बुलंदशहर, मुरसान, मथुरा और वृंदावन के वासियों को देश का पहला तकनीकी स्थान प्रेम महाविद्यालय के नाम से मिल गया। इसमें निःशुल्क शिक्षण की व्यवस्था थी।
बाद में राजा साहब ने बहुत सी छोटी-छोटी शिक्षण संस्थाएं खुलवायी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए इनके पिताजी ने कई एकड़ जमीन दान दी थी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए भी बड़ी धनराशि प्रदान की।
घर गृहस्थी का त्याग
राजा साहब ने देश हित में यौवनावस्था में ही अपनी रानी बलवीर कौर, पुत्री राजकुमारी भक्ति एवं पुत्र प्रेम प्रताप जी को मां भारती को सौंप दिया। स्वयं आजादी की अलख जगाने तथा देश को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाकर विदेश निकल पड़े। विदेश में उनकी भेंट क्रांतिकारी श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल, श्री वीरेंद्र चट्टोपाध्याय जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से हुई। आगे इसी पथ पर चलते हुए राजा साहब ने अनेक देश के राजा व महाराजाओं से मुलाकात करके हिंदुस्तान के दर्द को बयां किया। परिणामस्वरूप उनको कई जगह सफलता भी प्राप्त हुई।
इस बीच उन्होंने अफगानिस्तान में आजाद हिंद सरकार का गठन 1 दिसंबर 1915 को किया था। उसके राष्ट्रपति स्वयं आर्यन पेशवा राजा महेंद्र प्रताप सिंह बने। प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह खान, गृह मंत्री मोहम्मद अब्दुल्लाह खान, विदेश मंत्री चंपक रमन पिल्लई, युद्ध मंत्री मोहम्मद बशीर अहमद, संचार मंत्री मिस्टर अली जकारिया आदि बनाए। इसी तरह राजा साहब ने पूरे 31 वर्ष 7 माह विदेश में रहकर देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष किया। बड़े-बड़े राजनेताओं के अनुनय विनय पर वह सन 1946 में भारत वापस आए। विदेश से आने के बाद राजा साहब की मुलाकात महात्मा गांधी से उनके वर्धा स्थित आश्रम पर हुई। जब गांधी जी ने झुक कर राजा साहब के के चरण स्पर्श करने चाहे तो राजा साहब ने मना कर दिया।
महान क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता सेनानी के स्वागत के लिए पूरा देश उमड़ पड़ा। ब्रज आगमन पर ब्रज वासियों ने उनके स्वागत के लिए 84 स्वागत द्वार बनाए। यहां राजा साहब ने अपने चार घोड़ा वाली सजी-धजी बग्गी पर सवार होकर जयकारों के उद्घोष के साथ प्रवेश किया। ब्रज की जनता ने अपने राजा के लिए पलके बिछा दीं।
राजा साहब के प्रति किसने क्या कहा ?
महात्मा गांधी ने कहा था- कि लोग मुझे बड़ा मानते हैं लेकिन लेकिन राजा साहब मुझसे भी बड़े हैं। प्रेम महाविद्यालय वृंदावन में वर्ष 1915 में लोकार्पण के अवसर पर गांधीजी ने ये शब्द कहे थे। गांधी जी ने कहा था कि राजा महेंद्र प्रताप के लिए वर्ष 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था। उससे पहले भी उनकी ख्याति का हाल अफ्रीका में मेरे पास पहुंच गया था। मैं जब वृंदावन आया और मैंने जब इस महान शिक्षण संस्थान को देखा तो उनके लिए मेरा सम्मान और बढ़ गया। उनका त्याग तथा देशभक्ति दोनों ही सराहनीय हैं। उनके पत्रों से मैंने देख लिया है कि राजा साहब का सा विश्व प्रेम कहीं मिलता नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा—-
राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय अलीगढ़ के उद्घाटन समारोह मे कहा था कि भारत की आजादी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के योगदान को याद करने का यह एक पावन अवसर है। आज देश के हर युवा को जो बड़े सपने देख रहा है, जिसका बड़ा लक्ष्य है, उसे राजा महेंद्र प्रताप जी के बारे में अवश्य पढ़ना और जानना चाहिए। राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी के जीवन से हमें अदम्य इच्छाशक्ति, अपने सपनों को पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाली जीवंतता की सीख मिलती है। राजा साहब भारत की आजादी चाहते थे और अपने जीवन का एक-एक पल उन्होंने देश के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने सिर्फ भारत में ही रहकर लोगों को प्रेरित नहीं किया बल्कि वह भारत की आजादी के लिए दुनिया के कोने कोने में गए। अफगानिस्तान, जापान, दक्षिण अफ्रीका, रूस या चीन आदि देशों में अपने जीवन का खतरा उठाते हुए वह भारत माता को बेडियो से आजाद कराने के लिए जुटे रहे। जीवन भर काम करते रहे। मैं आज के युवाओं से कहूंगा कि जब भी जीवन में उनको कोई लक्ष्य हासिल करना हो मुश्किलें जरूर आएंगी, वहां राजा महेंद्र प्रताप सिंह को याद कर लेना। तुम्हारा हौसला बुलंद हो जाएगा। विश्वविद्यालय के शुभारंभ मौके पर योगी आदित्यनाथ ने भी राजा साहब को महान क्रांतिकारी बताया था।
44 वीं पुण्यतिथि पर उनके चरणों में शत-शत नमन….
डॉ अनीता चौधरी, वरिष्ठ साहित्यकार,
मथुरा
मो 6395 282180