नई दिल्ली : कल्पना कीजिए आप स्कूल में हैं और आपका रिपोर्ट कार्ड आया है। मैथ्स में C मिला, लेकिन बाकी सब्जेक्ट्स में B… मतलब आप पास तो हो गए, लेकिन सुधार की गुंजाइश है। हमारे देश की इकोनॉमी के साथ ठीक ऐसा हुआ है। 26 नवंबर को IMF ने भारत के GDP डेटा को ‘C’ ग्रेड दिया।
अगले ही दिन 27 नवंबर को सरकार ने Q2 यानी जुलाई-सितंबर 2025 के GDP आंकड़े जारी किए। इसमें बताया गया कि हमारे देश की इकोनॉमी दूसरी तिमाही में 8.2% की दर से बढ़ी। ये सबके अनुमान से ज्यादा है, साथ ही दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी भी है।
अब विपक्षी पार्टियां IMF की रिपोर्ट का हवाला देकर सवाल उठा रही हैं। कह रही हैं कि GDP ग्रोथ के आंकड़े भरोसेमंद नहीं हैं। यहां गौर करने वाली एक बात ये भी है कि 2024 में पाकिस्तान की इकोनॉमी को लेकर जो रिपोर्ट आई थी, उसमें हमारे पड़ोसी देश को भी C ग्रेड मिला था।
यानी, IMF मानता है कि भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के आधिकारिक आंकड़ों में एक जैसी कमियां हैं। इस न्यूज आर्टिकल में समझते हैं कि क्या सच में GDP के आंकड़ों में कुछ गड़बड़ है? IMF के C ग्रेड का क्या मतलब है? क्या भारत-पाकिस्तान को एक जैसी रेटिंग मिलना सही है?
IMF की रिपोर्ट का एनालिसिस
- सबसे कमजोर जगह → कवरेज (C ग्रेड): यानी, हम बहुत सारा डेटा इकट्ठा ही नहीं कर पाते, खासकर छोटे दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों, घर से काम करने वालों का।
- GDP डेटा का कुल ग्रेड → C: क्योंकि कवरेज में कमी है, इसलिए पूरा GDP आंकड़ा भी पूरी तरह भरोसेमंद नहीं माना जा रहा। विपक्षी पार्टियां भी इसी वजह से सवाल उठा रही हैं।
- भारत का ओवरऑल डेटा → B ग्रेड: मतलब “काम तो चल जाता है, लेकिन कई कमजोरियां हैं, जिन्हें जल्दी ठीक करना चाहिए। कमजोरी दूर होने के बाद A ग्रेड मिल सकता है।
A ग्रेड में आने के लिए तीन चीजें बदलनी होंगी…
2011-12 बेस ईयर को बदलना होगा। इसका अभी भी इस्तेमाल हो रहा है। इससे आंकड़े वर्तमान अर्थव्यवस्था को सही नहीं दिखाते। जबकि दुनिया में ये हर 5 साल में अपडेट होता है। भारत अगले साल यानी, 2026 में इसे बदलने जा रहा है। नया बेस ईयर 2022-23 होगा।
इसे बढ़ाना होगा। अनौपचारिक सेक्टर (90% वर्कर्स – रेहड़ी वाले, छोटे दुकानदार, घर से काम करने वाले) का हिसाब अभी ठीक से नहीं जुड़ता। इससे इकोनॉमी की पूरी पिक्चर साफ होगी, कोई गैप नहीं बचेगा। 2026 सीरीज में इसके सुधरने की उम्मीद जताई जा रही है।
अभी हम WPI (थोक मूल्य) देखते हैं, यानी दुकानदार ने फैक्ट्री से थोक में कितने रुपए में माल खरीदा। इसमें फैक्ट्री में बनाने की असली लागत का हिसाब नहीं मिलता। इसलिए, WPI की जगह PPI (उत्पादक मूल्य सूचकांक) अपनाना होगा, जो सीधे फैक्ट्री की लागत बताता है।
GDP के आंकड़ों में कुछ गड़बड़ है?
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- 2025-26 की दूसरी तिमाही में 8.2% GDP ग्रोथ बहुत उत्साहजनक है। ये हमारी ग्रोथ-फ्रेंडली नीतियों और रिफॉर्म्स का असर दिखाता है। वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- GDP डेटा से भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत ग्रोथ और रफ्तार साफ दिखती है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा- यह विडंबना है कि तिमाही GDP के आंकड़े उस समय जारी किए गए हैं, जब IMF रिपोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय लेखा-जोखा सांख्यिकी को ‘C’ ग्रेड दिया है। इकोनॉमी के आंकड़े अभी भी निराशाजनक हैं। निजी निवेश में कोई गति नहीं है।
कुछ एनालिस्ट्स का कहना है कि ये आंकड़े रियल हैं। कुछ कमियां हैं, लेकिन इसे गड़बड़ी कहना पूरी तरह से सही नहीं होगा। ‘C’ ग्रेड मिलना सुधार की चेतावनी है। 2026 में नई GDP सीरीज आने से ग्रेड में सुधार हो सकता है। IMF ने इकोनॉमी की ओवरऑल रेटिंग B ही दी है।
क्या भारत-पाकिस्तान को एक जैसी रेटिंग मिलना सही?
भारत और पाकिस्तान को IMF ने GDP डेटा में एक जैसा C ग्रेड इसलिए दिया क्योंकि हिसाब लिखने का तरीका दोनों देशों का लगभग एक जैसा है। छोटे दुकानदारों, रेहड़ी वालों और घर से काम करने वालों का हिसाब ठीक से नहीं जुड़ता, बेस ईयर पुराना है, मेथड भी पुरानी।
IMF ने ये नहीं देखा कि एक देश में लोकतंत्र है और दूसरे में बैकग्राउंड में सेना का असर। उसने सिर्फ गलतियां कितनी हैं ये देखा। लेकिन पूरी मार्कशीट में भारत पाकिस्तान से काफी आगे है।
भारत की ग्रोथ रेट 8.2% रही तो वहीं, पाकिस्तान 5.70% पर ही अटका रहा। मतलब हिसाब की क्वालिटी में दोनों बराबर हैं, लेकिन असली परफॉर्मेंस में भारत आगे है।

