• सोशल प्लेटफाॅर्म पर बीएसए कार्यालय के लेखा विभाग के बाबूओं द्वारा फर्जी वेतन जारी करने की चर्चाएं जोरों पर

देवरिया: उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी अधिकतर सवालों के घेरे में रहते हैं। यह सवाल ऐसे होते हैं जिन पर हर कोई आसानी से विश्वास कर सकता है। अब देवरिया के बीएसए कार्यालय से ही फर्जी नियुक्ति और पिछली तारीख में सहायक अध्यापक का वेतन जारी करने की बू आ रही है। यह चर्चाएं जोरों से सोशल प्लेटफार्म पर चल रही है, लेकिन अगर ऐसा है तो लखनऊ में बैठे अधीनस्थ अधिकारी आखिर इन मामलों पर चुप क्यों रहते हैं, क्या कोई मिलीभगत है ?

वाट्सएप पर बने वंदे मातरम गु्रप में बुधवार सुबह करीब 10 बजकर 42 मिनट पर अतुल राय नामक व्यक्ति ब्रेक्रिंग न्यूज फारवर्ड करते हैं, जिसमें देवरिया जनपद के बीएसए कार्यालय में लेखा विीााग अधिकारी व बाबू मयंक तिवारी और जावेद अख्तर दोनों के माध्यम से किसी भी सैलरी या एरियार भुगतान के लिए बिना घूस के कोई भुगतान नहीं होता-सूत्र लिखा हुआ है।

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इसके बाद तत्काल एक मिनट बाद नीरज कुमार श्रीवास्तव अतुल राय की फारवर्ड हुई पोस्ट पर टैग लगाते हुए लिखते हैं कि फर्जी नियुक्ति व अनुमोद वर्ष 2010 में दिखाया गया है, जिस पर फर्जी हस्ताक्षर ए एन मोर्या का है और बैकडेटिंग कर सहायक अध्यापक का वेतन भुगतान करा लिया गया है।

इसके 5 मिनट बाद अतुल राय की फारवर्ड पोस्ट पर ही विनय तिवारी नामक व्यक्ति लिखते हैं कि यहां के तो अधिकारी संजय कुमार हैं उनका आॅफिस तो एक नंबर के टायल्स और एसी लगा हुआ है और वो तो बहुत ईमानदार अधिकारी हैं।

इसके साथ ही नरीज कुमार श्रीवास्तव फिर लिखते हैं कि एक व्यक्ति का दो अलग-अलग विद्यालयों में नियुक्ति/अनुमोदन है और बैकडेटिंग कर सहायक अध्यापक का वेतन भुगतान हो रहा है। इसमें जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी देवरिया के कार्यालय कर्मचारियों की मिलीभगत है।

फिर से नीरज कुमार श्रीवास्तव अपनी पोस्ट पर टैग लगाकर लिखते हैं कि तनुज श्रीवास्तव। तनुज श्रीवास्तव पर टैग लगाकर विनय तिवारी लिखते हैं कि सब चोर हैं और तो और ये लोग इतने तानाशाह है कि फोन तक नहीं उठाते।

विनय तिवारी द्वारा लिखे सब चोर हैं पोस्ट पर टैग लगाकर नीरज कुमार श्रीवास्तव लिखते हैं कि काफी मोटा एरिअर का बंदरबांट किया गया है। एसटीएफ भी इन लोगों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर पा रही है।

आगे और भी चर्चाएं हैं, वीडियो देखें !

अब सवाल यह है कि अगर ऐसा बीएसए कार्यालय मंे हो रहा है तो, योगी सरकार की भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टालरेंस की नीति को ये अफसर ही धब्बा लगाने में जुटे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो, बीएसए कार्यालय से ये भ्रष्टाचार की बू क्यों आ रही है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि कुछ तो है, जो व्यक्ति सोशल प्लेटफाॅर्म पर चर्चाएं कर रहे हैं।

लखनऊ में बैठे बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों को भी कोई सरोकार नहीं है कि कितना भी वेतन जारी हो जाये। शायद इस संबंध में कभी कोई जांच की आवश्यकता ही अफसरों को नहीं दिखती।

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