- एनईपी 2020 के तहत भी शिक्षा में कोई सुधार के आसार नहीं, अभिभावक बोले लगातार व्यापार की ओर बढ़ रही शिक्षा
- केन्द्र और प्रदेश की सरकारों ने निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर आज तक कोई नियम तय नहीं किए, निजी स्कूलों तय कर रखे हैं महंगे बुक सेलर
- सामान्य अभिभावक के लिए निजी स्कूलों में पढ़ाई कराना महंगा, सरकारी स्कूलों में हाल-ए-बेहाल शिक्षा
दैनिक उजाला, मथुरा : प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का हाल-ए-बेहाल है। हाल ये है कि सरकारी स्कूलों में व्यवस्थाएं एवं पढ़ाई न होने के कारण सरकारी शिक्षकों की लापरवाही निजी स्कूल संचालकों के लिए अमृत साबित हो रही है। केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा निजी स्कूलों के लिए कोई नियम नियम न बनाए जाने को लेकर अभिभावक खासे नाराज हैं। अभिभावकों का मानना है कि निजी स्कूल संचालकों ने शिक्षा को व्यापार की ओर ढ़केल दिया है। बावजूद इसके सरकारों का शिक्षा इस दयनीय स्थिति पर कोई अंकुश नहीं लग पाया है।
1 अप्रैल 2024 से नए सेशन सत्र चालू हो गए हैं। निजी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। सरकारी विद्यालयों में बेहतर पढ़ाई की व्यवस्थाएं न होने के कारण अभिभावक अपने बच्चों को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा दिलाने के लिए निजी विद्यालयों का रूख करने को मजबूर हैं। हालात ये हैं कि परिषदीय विद्यालयों में तैनात शिक्षकों की लापरवाही निजी स्कूलों के अमृत बनकर उभर रही है।
निजी स्कूलों की मनमानी फीस और तय महंगे और कमीशन वाले बुक सेलर
निजी विद्यालयों की स्थिति ये है कि प्रवेश लेने के लिए जैसे ही अभिभावक अपने बच्चे को लेकर निजी स्कूल की ओर रूख करता है तो, अभिभावक के ऊपर सर्वप्रथम फीस का इतना बोझ डाल दिया जाता है कि वह न चाहते हुए भी सरकारी नियमों की कथनी और करनी का फर्क गिनाये बगैर नहीं रहता। फीस के बाद अभिभावक के हाथों में एक लाल, सफेद, पीली ‘चिठ्ठी‘ थमाई जाती है, जिस पर किताबां के नाम और बुक सेलर का नाम अंकित होता है। जैसे ही बुके सेलर के पास अभिभावक उक्त कक्षा की किताबें निकालने के लिए कहता और रेट पूछता है तो, रेट सुनते ही अभिभावक के कान खड़े हो जाते हैं।
निजी स्कूल की एक माह की फीस जितनी महंगी होती हैं किताबें
निजी स्कूलों का मनमाना रवैया यह है कि शिक्षा को इस प्रकार व्यापार की ओर धकेला जा रहा है कि एक सामान्य अभिभावक के लिए निजी स्कूल में पढ़ाना लाजिमी नहीं है। क्योंकि एक निजी स्कूल महंगे बुक सेलर पहले से ही तय होते हैं। जहां निजी स्कूलों का प्रत्येक किताब पर कमीशन सेट होता है। स्कूलों की महंगी किताबों की बात करें तो, केन्द्र सरकार की एनईपी 2020 पॉलिसी को इस प्रकार चिढ़ाया जा रहा है कि एनईपी का लोगो लगी हुई कक्षा 1 किताबें 1 हजार से 2 हजार या उससे अधिक के रेट में मिल रही हैं। बुक सेलर कहते हैं कि उन्हें स्कूलों को भी देना होता है।
अभिभावक क्या बोले
बलदेव निवासी गोपाल पांडेय ने बताया कि वह गोयल बुक सेंटर पर कक्षा एक की किताबें लेने के लिए गए तो, बुक सेंटर मालिक ने 780 रूपए हिंदी, अंग्रेजी और गणित की किताबों का मूल्य बताया। महंगी किताबों के बारे में बुक सेंटर मालिक से जब पूछा गया तो, उसने बताया कि उसे संबंधित विद्यालय को भी कमीशन देना होता है।
छौली अमीरपुर निवासी योगेश कुमार कहते हैं कि शिक्षा का व्यापारीकरण इस प्रकार हो गया है कि अगर पैसा है तो, स्कूल में प्रवेश है। नहीं तो बाहर रास्त दिखा देते हैं निजी संचालक। परिषदीय स्कूल में इस लिए बच्चों को नहीं पढ़ा पा रहे हैं कि यहां तैनात शिक्षक इतने लापरवाह हैं कि न तो इनके आने का समय और न जाने का समय, न क्लास लेने का समय। यानि कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार ने भी इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। सरकार ध्यान दे तो निजी स्कूल संचालकों की मनमानी खत्म हो और हर जगह स्कूलों किताबें उपलब्ध हों।