नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से नेविगेशन सैटेलाइट NVS-01 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इससे हमारा नेविगेशन सिस्टम और मजबूत होगा। नाविक सैटेलाइट्स से हमारी सेनाओं को दुश्मनों के ठिकानों की सटीक जानकारी मिलेगी। इनके अलावा, नेविगेशन सर्विस भी मजबूत होगी।
NVS-01 इंडियन कॉन्स्टेलशन सर्विस (NavIC) के साथ नेविगेशन के लिए दूसरी जनरेशन की अपने तरह की पहली सैटेलाइट है। 2,232 किग्रा वजन की इस सैटेलाइट में स्वदेशी एटॉमिक घड़ी लगाई गई है। ये घड़ी ऑर्बिट रेजिंग प्रोसीजर को और भी बेहतर और बारीकी से बता सकेगी। साथ ही यह भारत और इसके आसपास के क्षेत्रों में यूजर्स को स्थिति, वेलोसिटी और समय की जानकारी देगी।
ISRO अनुसार NVS-01 सैटेलाइट IRNSS-1G सैटेलाइट की जगह लेगा। IRNSS-1G सैटेलाइट वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था। ये सैटेलाइट भारतीय क्षेत्र को नेविगेशनल सर्विस देने वाली 7 सैटेलाइट के एक ग्रुप का हिस्सा है। इसकी मिशन लाइफ 12 साल है। दूसरी जनरेशन की सैटेलाइट एडवांस फीचर और क्षमताओं के साथ बनाई जाती हैं। इसे लगभग 36,000 किमी के अपोजी के साथ जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में तैनात किया जाएगा।
दुनिया में इन देशों के पास है अपना नेविगेशन सिस्टम?
- अमेरिका जीपीएस – (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम)
- रूस – ग्लोनास (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)
- यूरोपीय संघ – गैलीलियो
- चीन – BeiDou नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (BDS)
- भारत – NavIC (नेविगेशन विद इंडियन Constellation)
- जापान – QZSS (क्वैसी-जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम)
- दक्षिण कोरिया – KASS (कोरिया ऑग्मेंटेशन सैटेलाइट सिस्टम)
कभी अमेरिका ने मदद करने से इनकार कर दिया था
1999 में कारगिल वॉर के दौरान भारत सरकार ने घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की पोजिशन जानने के लिए अमेरिका से मदद मांगी थी। तब अमेरिका ने GPS सपोर्ट देने से मना कर दिया था। इसके बाद से ही भारत अपना नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम बनाने में जुट गया था।