जयपुर : राजस्थान में लगातार दो बार क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा इस बार अपनों से हार गई। लोकसभा चुनाव में जीत के प्रति अति आत्मविश्वास भाजपा के लिए नुकसानदायक रहा। केन्द्रीय नेतृत्व यह मान बैठा कि तीसरी बार राज्य में एकतरफा जीत होगी। यही आत्मविश्वास बड़े नेताओं की नाराजगी का कारण बन बैठा राज्य के बड़े नेताओं ने चुनाव से कन्नी काट ली।

यह चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नए कंधों पर आकर टिक गया। अब भाजपा के कुछ दिग्गज विधायकों का खेल शुरू हुआ। बस एक ही मकसद अपने लोग जीतें, बाकी प्रत्याशियों के साथ भितरघात पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार धौलपुर करौली, भरतपुर, सीकर, झुंझुनं चूरू, नागौर, टोंक-सवाई माधोपुर, दौसा, बाड़मेर, बांसवाड़ा सीट पर अपने तमाम वजीरों को भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ ही सक्रिय कर दिया गया। यह भितरघात भाजपा के लिए पुराना प्रदर्शन दोहराने में बाधा बन गया।

कांग्रेस इस मामले में कुछ हद तक भाजपा से बेहतर रही। हालांकि भाजपा से ज्यादा गुटबाजी और भितरघात कांग्रेस के बड़े नेताओं में कायम रही, लेकिन लोकसभा | चुनाव में उसका ज्यादा असर नहीं पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे चुनाव के दौरान अपने बेटे वैभव गहलोत को जिताने के प्रयास में जालोर से ज्यादा बाहर नहीं निकल सके। गहलोत ने राज्य में कुल 53 चुनावी सभा कीं। इनमें से अकेले जालोर में करीब 22 सभाओं को संबोधित किया। ऐसे में सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा ने चुनाव की कमान संभाल ली। दोनों की जोड़ी ने पूरे चुनाव में कांग्रेस का माहौल बनाए रखा। कांग्रेस का अन्य दलों से गठबंधन के साथ एकजुटता से लड़ने का फार्मूला भी सफल रहा।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में शानदार प्रदर्शन किया। उत्तरी राजस्थान के शेखावाटी की चूरू, झुंझुनं, सीकर और गठबंधन में नागौर लोकसभा सीट पर बाजी मारी, वहीं पूर्वी राजस्थान की दौसा, भरतपुर, धौलपुर करौली और टॉक सवाई माधोपुर सीट जीती। वहीं पश्चिमी और दक्षिणी राजस्थान में एक-एक सीट जीतने में कामयाबी मिली है।

राज्य की 25 सीटों में से भाजपा ने 14 सीट जीतीं। कांग्रेस ने 8 और उसके सहयोगी दलों ने 3 सीटों पर बाजी मारी। कांग्रेस का उत्तरी राजस्थान के शेखावाटी और पूर्वी राजस्थान में शानदार प्रदर्शन रहा। लंबे समय बाद भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य दलों ने 3 सीटें जीतीं चुनाव में किस्मत आजमा रहे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला फिर जीतने के साथ संसद पहुंच गए हैं। चार केन्द्रीय मंत्रियों में से एक कैलाश चौधरी को बाड़मेर लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा।

पायलट-डोटासरा के सिर सेहरा

लोकसभा चुनाव में एक दशक बाद कांग्रेस की वापसी का सेहरा प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट के सिर बंधा। डोटासरा और पायलट के आक्रामक प्रचार की बदौलत कांग्रेस दोनों चरणों में प्रभावी नजर आई। शेखावाटी में सीपीएम से गठबंधन और भाजपा के बागी राहुल कस्वां को टिकट दिलाने में डोटासरा ने अहम भूमिका निभाई। इसी के दम शेखावटी से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। उधर, पायलट ने अपने करीबी ब्रजेन्द्र ओला, भजनलाल जाटव, मुरारीलाल मीना, हरीश मीना, संजना जाटव और कुलदीप इंदौरा को न केवल टिकट दिलाए बल्कि उनकी जीत में भी अहम भूमिका निभाई।

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