दैनिक उजाला, मथुरा : उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों से जुड़े ब्रज के 37 वनों को प्राचीन स्वरूप देने जा रहा है। इसके लिए 85 करोड़ की बनाई गई DPR का मूल्यांकन करने के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक लखनऊ ने कमेटी का गठन कर दिया है। संभावना है कि जल्द ही इसकी स्वीकृति होने पर कृष्ण कालीन वृक्षों वाले वन क्षेत्र ब्रज में विकसित करने का काम शुरू हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने दी बबूल के पेड़ हटाने की अनुमति
उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा में 37 वन क्षेत्र में मौजूद बिलायती बबूल के पेड़ों को हटाने की अनुमति प्रदान की है। सुप्रीम कोर्ट की सहमति के बाद अब उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद 490 हेक्टेयर में फैले इन 37 वनों में बिलायती बबूल हटाकर कृष्ण कालीन वृक्ष लगाने की योजना पर काम करने जा रहा है। इसके लिए वन विभाग ने 10 साल की योजना तैयार की है।
सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा में 37 वन क्षेत्र में मौजूद बिलायती बबूल के पेड़ों को हटाने की अनुमति प्रदान की है
तीन चरण में होगा काम
इस योजना के तहत बबूल के पेड़ों को हटाना और नए वृक्ष लगाना शामिल है। इस पर 85 करोड़ की लागत आएगी। यह काम तीन फेस में होगा। प्रथम फेस में 165 हेक्टेयर में वन विकसित होगा। सेकेंड फेस में 150 और थर्ड फेस में 175 हेक्टेयर पर वन का काम होना है। 490 हेक्टेयर में ये वन क्षेत्र फैले हुए हैं। इसमें 26 वन क्षेत्र आरक्षित और 11 ग्राम सभा के अंतर्गत हैं। परियोजना पर 10 साल में 85 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
सुप्रीम कोर्ट की सहमति के बाद अब उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद 490 हेक्टेयर में फैले इन 37 वनों में बिलायती बबूल हटाकर कृष्ण कालीन वृक्ष लगाने की योजना पर काम करने जा रहा है
प्रत्येक वन का है धार्मिक महत्व
उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के पर्यावरण विशेषज्ञ मुकेश कुमार शर्मा ने बताया कि परिषद द्वारा विकसित किए जाने वाले प्रत्येक वन क्षेत्र का अपना धार्मिक महत्व है। प्रत्येक का अपना देवता भी है। यह सभी वन क्षेत्र ब्रज 84 कोस परिक्रमा अंतर्गत आते हैं। बबूल हटाकर यहां कृष्ण कालीन पौधे लगाने के साथ स्थानीय देवता की स्थापना भी करनी है, जिससे यहां पहुंच कर लोग पूजा अर्चना भी कर सके। लोगों के बैठने के साथ अन्य सुविधाओं का विकास होगा। इसके साथ वन की सुरक्षा के लिए बाउंड्री भी होगी।
विकसित किए जाने वाले प्रत्येक वन क्षेत्र का अपना धार्मिक महत्व है। प्रत्येक का अपना देवता भी है। यह सभी वन क्षेत्र ब्रज 84 कोस परिक्रमा अंतर्गत आते हैं
कृष्ण कालीन लगाए जायेंगे यह वृक्ष
वन क्षेत्र में बबूल को हटाकर कृष्ण कालीन पीपल, बरगद, पाखड़, मोलश्री, देसी कदंब, बरना, तमाल, जामुन, अर्जुन, पापड़ी, बेलपत्र, आंवला आदि के वृक्ष लगाए जायेंगे।
योजना के तहत बबूल के पेड़ों को हटाना और नए वृक्ष लगाना शामिल है। इस पर 85 करोड़ की लागत आएगी
ये हैं चिन्हित वन क्षेत्र
इस योजना के तहत वृंदावन वन (सुनरख), मथुरा वन (अहिल्या गंज), विछुवन (जतीपुरा), चंद्रावली वन (सकतीकरा), राधाकुंड वन, गोवर्धन वन, नंदगांव, विहार वन (कामर छाता), कोकिला वन, संकेत वन, कोटवन, तालवन, भांडीर वन, पाडर वन, कुम्मोद वन, तरेला, वक्ष वन, आंजनोर, लोहवन, महावन, गोकुल वन शामिल हैं।
कृष्ण लीला देती हैं मानव कल्याण के साथ प्रकृति संरक्षण का संदेश
उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्याम बहादुर सिंह ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं मानव कल्याण के साथ प्रकृति के संरक्षण का संदेश देती हैं। इसी के तहत उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद प्राचीन कुंड-सरोवर के साथ वनों के विकास पर भी काम कर रहा है। इसके पीछे ब्रज के प्राचीन स्वरूप को पुनर्जीवित करना है, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालों को मूलभूत सुविधाओं के साथ यहां धार्मिक और आध्यात्मिक भूमि में मौजूदगी की अनुभूति हो सके। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत वन विभाग के स्तर से 37 वन विकसित करने के लिए डीपीआर तैयार कराई है, जिसे अनुमति के लिए लखनऊ भेजा गया है, जिसे परखने के लिए लखनऊ स्तर पर कमेटी का गठन कर दिया है।इसके स्वीकृति होने पर चिन्हित वन क्षेत्रों से बबूल हटाकर कृष्ण कालीन पौधे लगाने का काम होगा।