नई दिल्ली : मणिपुर के जिरीबाम जिले और आसपास के इलाकों से 1,100 से अधिक लोगों ने अंतरराज्यीय सीमा पार कर असम के कछार जिले में प्रवेश किया। वहीं, हिंसा में कई लोगों की जान चली गई है। एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया कि मणिपुर में अब तक 54 लोगों की जान जा चुकी है। 54 मृतकों में 16 शव चुराचंदपुर जिला अस्पताल के मुर्दाघर में रखे गए हैं, जबकि 15 शव इम्फाल ईस्ट के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में हैं।

जिरीबाम के निवासी 43-वर्षीय एल मुआंगपु ने कहा, वीरवार की रात लगभग 10 बजे हमने अपने इलाके में चीख-पुकार सुनी। हमें यह महसूस करने में कुछ मिनट लग गए कि हम पर हमला किया गया है। वे पथराव कर रहे थे, हमें धमकी दे रहे थे और कह रहे थे कि यह उनका अंतिम युद्ध है। अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर से भागकर यहां पहुंची एक अन्य निवासी 24-वर्षीया वैहसी खोंगसाई ने कहा कि बृहस्पतिवार सुबह उनके क्षेत्र में एक शांति बैठक हुई और मेइती तथा कुकी दोनों समुदायों ने एक-दूसरे की रक्षा करने का आश्वासन दिया।

उन्होंने कहा, एक प्रस्ताव लाया गया और हम खुश थे कि दोनों समुदाय एक-दूसरे की रक्षा करने के लिए सहमत हुए थे। हालांकि, रात में हमें एहसास हुआ कि यह एक झूठा समझौता था। उन्होंने पहले गिरजाघर पर हमला किया और हमारे घरों को जलाने का प्रयास किया। इलाके के पुरुषों ने हमारी रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। खोंगसाई ने कहा कि सेना ने वीरवार रात स्थिति को नियंत्रित किया, लेकिन उन्हें लगा कि कुछ समय के लिए अपने-अपने घरों को छोड़ देना ही बेहतर रहेगा।

मणिपुर हिंसा को कंट्रोल करने के लिए सरकार ने बेहद विषम परिस्थिति में हिंसा करने वालों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया है। बुधवार से पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को तत्काल प्रभाव से 5 दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है। राज्य के कई जिलों में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है। सोशल मीडिया पर इस व्यापक हिंसा को लेकर कई तस्वीरें और वीडियो शेयर किए गए। वीडियो और फोटो में कई घरों को आग में जलता हुआ देखा गया।

मणिपुर में मैतेई समुदाय का वर्चस्व

मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा है। कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक इसी समुदाय से हैं। जबकि 90 प्रतिशत पहाड़ी भौगोलिक क्षेत्र में प्रदेश की 35 फ़ीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। लेकिन इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुँचते हैं।

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