दैनिक उजाला, मथुरा : जीएलए विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ बिज़नेस मैनेजमेंट में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) प्रायोजित दो-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ‘‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड बिज़नेस प्रैक्टिसेज़ बिल्डिंग अ रेज़िलिएंट फ्यूचर” का सफल आयोजन हुआ।

इस आयोजन का उद्देश्य सतत विकास, नवाचार और व्यापारिक लचीलेपन के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप से अपनाने की दिशा में अकादमिक, औद्योगिक और नीतिगत जगत के बीच सार्थक संवाद स्थापित करना रहा। सम्मेलन में देश-विदेश से विषय विशेषज्ञों और प्रतिभागियों ने भाग लिया। कुल 200 से अधिक प्रतिभागियों ने आठ विषयगत ट्रैक्स में 80 उत्कृष्ट शोध-पत्र प्रस्तुत किए।

आर्थिक प्रगति के साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखें

मुख्य अतिथि डॉ. सुनील लूथरा, निदेशक (प्रशिक्षण एवं अधिगम), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने कहा कि “सतत विकास केवल नीतिगत अवधारणा नहीं बल्कि, यह संस्थागत उत्तरदायित्व और सामाजिक अनिवार्यता है। शिक्षा जगत, उद्योग और नीति निर्माताओं को मिलकर ऐसे उपाय विकसित करने होंगे जो आर्थिक प्रगति के साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखें। जब तक विकास मानव और प्रकृति दोनों के हित में नहीं होगा, तब तक वह दीर्घकालिक नहीं कहा जा सकता।” उन्होंने नीतिगत और संस्थागत दृष्टिकोण से सतत विकास की आवश्यकता पर विस्तारपूर्वक अपने विचार साझा किए।

विशिष्ट अतिथि डॉ. सचिन कुमार मंगला (ओ.पी. जिंदल ग्लोबल बिज़नेस स्कूल), डॉ. रचना चतुर्वेदी (एआईएसईसीटी विश्वविद्यालय समूह) और प्रो. मांगेराम (ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय) रहे।

कुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने कहा कि सतत और समग्र प्रगति तभी सार्थक है जब उसमें पर्यावरणीय संतुलन और सामाजिक उत्तरदायित्व का समावेश हो।

हरित प्रौद्योगिकियाँ सतत विकास की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं

प्रबंधन संकाय निदेशक प्रो. अनुराग सिंह ने कहा कि आधुनिक तकनीक अब केवल उत्पादकता का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने का प्रमुख उपकरण है। उन्होंने बताया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा एनालिटिक्स और हरित प्रौद्योगिकियाँ सतत विकास की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।

कॉन्फ्रेंस के सह-संयोजक डॉ. जितेन्द्र कुमार दीक्षित के संचालन में व्यवसायिक रणनीतियों में ईएसजी सिद्धांतों का एकीकरण विषय पर पैनल चर्चा आयोजित हुई, जिसमें मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथियों ने पैनलिस्ट के रूप में भाग लिया। वक्ताओं ने कहा कि किसी भी संगठन की दीर्घकालिक सफलता उसके पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासनिक (ईएसजी) उत्तरदायित्वों पर निर्भर करती है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ईएसजी केवल कॉर्पोरेट औपचारिकता नहीं, बल्कि जिम्मेदार और सतत व्यवसाय का आधार है।

कॉन्फ्रेंस समन्वयक डॉ. शिवम भारद्वाज द्वारा संचालित सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल्सः शून्य अपशिष्ट और लाभप्रदता की दिशा में कदम विषय पर पैनल चर्चा में डॉ. गरिमा माथुर, डॉ. सूर्य प्रकाश, डॉ. अमरनाथ त्रिपाठी, डॉ. कुमार आशीष तथा डॉ. पुष्कर शर्मा बतौर विशेषज्ञ शामिल रहे। उन्होंने बताया कि सर्कुलर इकोनॉमी केवल अपशिष्ट प्रबंधन का उपाय नहीं बल्कि संसाधनों के सतत उपयोग, नवाचार और आर्थिक दक्षता के बीच संतुलन का प्रभावी मॉडल है।

विभिन्न संस्थानों से विशेषज्ञों की सहभागिता रही

सम्मेलन में यॉर्क यूनिवर्सिटी (कनाडा), साउथ-ईस्ट यूरोपियन यूनिवर्सिटी (नॉर्थ मैसेडोनिया), यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलॉजी एंड अप्लाइड साइंस (ओमान), यासर यूनिवर्सिटी (तुर्की), टेलकों यूनिवर्सिटी (इंडोनेशिया), जिंदल ग्लोबल बिज़नेस स्कूल, जयपुरिया इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, बिट्स, बनस्थली विद्यापीठ, जम्मू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, दयालबाग शैक्षिक संस्थान, जीडी गोयंका विश्वविद्यालय, शारदा विश्वविद्यालय, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार, डॉ. डी.वाई. पाटिल बी-स्कूल, सीएसजेएम विश्वविद्यालय, एसएमजेएन कॉलेज हरिद्वार, फॉनिक्स यूनिवर्सिटी, मदरहुड यूनिवर्सिटी और एसआरएम यूनिवर्सिटी सहित विभिन्न संस्थानों से विशेषज्ञों की सहभागिता रही। इस व्यापक प्रतिनिधित्व ने सम्मेलन को वैश्विक विमर्श का रूप दिया।

उद्घाटन सत्र में अतिथि परिचय कॉन्फ्रेंस संयोजक डॉ. सुचेता अग्रवाल, स्वागत उद्बोधन विभागाध्यक्ष एवं सह-संयोजक प्रो. उत्कल खंडेलवाल, विषय प्रवर्तन प्रो. अनुराग सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. कृष्णवीर सिंह द्वारा किया गया। समापन सत्र में सह-संयोजक प्रो. विवेक अग्रवाल एवं समन्वयक डॉ. नीरज पाठक ने सम्मेलन का सार प्रस्तुत कर सभी वक्ताओं, पैनलिस्टों, समीक्षकों, प्रतिभागियों और सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। संचालन डॉ. अनीसिया शर्मा ने किया। कॉन्फ्रेंस की व्यवस्थाओं में डॉ. नीरज पाठक, अनुराग विश्वकर्मा, श्वेता चौधरी, वर्तिका त्रिवेदी, मनोज शर्मा, भावना शर्मा, विश्राम चौधरी, यशमीत सिंह, अर्चना गहलौत और डॉ. हिमांशु प्रजापति का विशेष योगदान रहा।

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