नई दिल्ली : आम बजट में राज्यों को हुए धन आवंटन में भेदभाव का आरोप लगाते हुए तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने नीति आयोग की 27 जुलाई को होने वाली बैठक का बहिष्कार करने का ऐलान किया है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने मंगलवार की शाम को एक प्रेस कांफ्रेंस में यह जानकारी दी। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया पोस्ट में भाजपा सरकार के आम बजट को देश के लिए विभाजनकारी और खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि यह बजट संघीय ढांचे और निष्पक्षता के खिलाफ है। वह अपने पोस्ट में आगे लिखते हैं, इस बजट का विरोध करते हुए कांग्रेस के सभी मुख्यमंत्री 27 जुलाई को होने वाली नीति आयोग की बैठक का विरोध करेंगे। यह सरकार एकदम संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ काम कर रही है। हम ऐसे किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे जो विभाजनकारी और सत्य को छिपाने वाला हो। कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों में तेलंगाना के रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के सिद्दारमैया और हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुखू शामिल हैं।
सिद्दारमैया ने सोशल मीडिया पोस्ट में कन्नड लोगों की बात बजट में नहीं सुने जाने का आरोप लगाते हुए नीति आयोग की बैठक के बहिष्कार का ऐलान किया है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, “कर्नाटक की आवश्यक जरूरतों पर चर्चा करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने के मेरे प्रयासों के बावजूद केंद्रीय बजट ने हमारे राज्य की मांगों की उपेक्षा की है। यहां तक कि मेकेदातु जलाशय परियोजना और महादयी नदी परियोजनाओं पर हमारे किसानों की मांगों को भी नजरअंदाज किया। विभिन्न श्रेणियों के तहत हमारे राज्य को मिलने वाले फंड को कम कर राज्य को नुकसान पहुंचाया गया है। मेट्रो और अन्य इंफ्रा परियोजनाओं के लिए धन अभी भी एक दूर का सपना है। पीएम ने अपनी सरकार को बचाने के लिए बजट में आंध्र प्रदेश और बिहार से आगे नहीं देखा।”
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी आम बजट पर सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि बजट में तमिलनाडु को “सबसे बड़ा विश्वासघात” झेलना पड़ा है। उन्होंने भाजपा सरकार के धन आवंटन पर गहरा असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने तमिलनाडु की जरूरतों और मांगों को लगातार नजरअंदाज किया है। साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए आवंटन में नगण्य वृद्धि पर भी प्रकाश डाला और इसे राज्य की मौजूदा जरूरतों को देखते हुए चिंताजनक बताया। उन्होंने आगे कहा, “राज्य की कल्याणकारी योजनाओं के लिए दिए जाने वाले धन में भारी कटौती की गई है, जिसमें तमिलनाडु के आर्थिक विकास का समर्थन करने के लिए किसी भी नई पहल का उल्लेख नहीं है”। “राज्य सरकार लगातार केंद्रीय निधियों के उचित हिस्से की मांग कर रही है, लेकिन इस बजट ने एक बार फिर हमारी सारी मांगों को नजरअंदाज कर दिया है”।