नई दिल्ली : गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को दिल्ली में ‘जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख थ्रू द एजेस’ पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में कहा कि कश्मीर का नाम कश्यप के नाम पर हो सकता है। इतिहासकारों ने कश्मीर का इतिहास पुस्तकों के जरिए बताने की कोशिश की। मेरी इतिहासकारों से अपील है कि प्रमाण के आधार पर इतिहास लिखें।

उन्होंने कहा- 150 साल का एक दौर था, जब इतिहास का मतलब दिल्ली दरीबा से बल्ली मारान तक और लुटियन से जिमखाना तक था। इतिहास यहीं तक सीमित था। यह समय शासकों को खुश करने के लिए लिखे गए इतिहास से खुद को मुक्त करने का है। मैं इतिहासकारों से अपील करता हूं कि वे हमारे हजारों साल पुराने इतिहास को तथ्यों के साथ लिखें।

शाह ने कहा कि कश्मीर का भारत से न टूटने वाला जोड़ है। लद्दाख में मंदिर तोड़े गए, कश्मीर में आजादी के बाद गलतियां हुईं, फिर उन्हें सुधारा गया। शंकराचार्य का जिक्र, सिल्क रूट, हेमिष मठ से साबित होता है कि कश्मीर में ही भारत की संस्कृति की नींव पड़ी थी। सूफी, बौध और शैल मठ सभी ने कश्मीर में विकास किया। देश की जनता के सामने सही चीजों को रखा जाए।

अनुच्छेद 370 ने घाटी में अलगाववाद के बीज बोए

शाह ने कहा, “अनुच्छेद 370 और 35ए, वे अनुच्छेद थे, जिन्होंने कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने में बाधा डाली। पीएम मोदी के दृढ़ संकल्प ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया। इससे देश के बाकी हिस्सों के साथ-साथ कश्मीर का विकास शुरू हुआ। अनुच्छेद 370 ने घाटी में अलगाववाद के बीज बोए, जो बाद में आतंकवाद में बदल गया। कांग्रेस हम पर जो चाहे आरोप लगा सकती है। पीएम मोदी ने 80,000 करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया।

भारत दुनिया का एकमात्र भू-सांस्कृतिक देश

उन्होंने कहा कि दुनिया के सभी देशों का अस्तित्व भू-राजनीतिक है। वे युद्ध या समझौते के परिणामस्वरूप सीमाओं से बने हैं। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो ‘भू-सांस्कृतिक’ देश है और सीमाएं संस्कृति के कारण परिभाषित होती हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी, गांधार से ओडिशा और बंगाल से असम तक हम अपनी संस्कृति के कारण जुड़े हुए हैं, जो लोग किसी देश को भू-राजनीतिक के रूप में परिभाषित करते हैं, वे हमारे देश को परिभाषित नहीं कर सकते।

देश को जोड़ने वाले तथ्यों को समझना होगा

शाह ने कहा- भारत को समझने के लिए हमारे देश को जोड़ने वाले तथ्यों को समझना होगा। कश्मीर और लद्दाख कहां थे, इसका विश्लेषण इस आधार पर करना कि इस पर किसने शासन किया, यहां कौन रहता था और क्या समझौते हुए, व्यर्थ है। केवल इतिहास की कुटिल दृष्टि वाले इतिहासकार ही ऐसा कर सकते हैं। भारत की 10,000 साल पुरानी संस्कृति कश्मीर में भी मौजूद थी।

कोई भी इसे कानून की धाराओं का उपयोग करके अलग नहीं कर सकता। अलग करने का प्रयास किया गया, लेकिन समय के प्रवाह में उन धाराओं को निरस्त कर दिया गया और सभी बाधाएं दूर हो गईं।

किताब में 8000 साल का पूरा इतिहास

शाह ने कहा- ‘जेएंडके एंड लद्दाख थ्रू द एजेस’ पुस्तक में सभी तथ्यों को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। पुराने मंदिरों के खंडहरों में मौजूद कलाकृति यह साबित करती है कि कश्मीर भारत का ही हिस्सा है। कश्मीर नेपाल से अफगानिस्तान तक की बौद्ध यात्रा का भी अभिन्न अंग है। बौद्ध धर्म से लेकर ध्वस्त मंदिरों तक, संस्कृत के प्रयोग तक, महाराजा रणजीत सिंह के शासन से लेकर डोगरा शासनकाल तक, 1947 के बाद हुई गलतियों और उनके सुधार तक, 8000 साल का पूरा इतिहास इस पुस्तक में समाहित है।”

मोदी ने कश्मीर की भाषाओं को नया जीवन दिया

शाह ने कहा- मैं पीएम मोदी को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाकर कश्मीर की भाषाओं को नया जीवन देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि कश्मीर में बोली जाने वाली हर भाषा को महत्व दिया जाना चाहिए और उसे शामिल किया जाना चाहिए। यह साबित करता है कि किसी देश का पीएम देश की भाषाओं के प्रति कितना संवेदनशील हो सकता है।

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