- गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी में “पुष्टि मार्ग एवं अष्ट छाप ” संगोष्ठी का आयोजन
वृन्दावन : उ.प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद मथुरा द्वारा गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी वृन्दावन के सभागार में “पुष्टि मार्ग एवं अष्ट छाप कवि” संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी का शुभारंभ पुष्टि मार्ग सम्प्रदाय के संत पंकज बाबा गोकुल एवं बसन्त चतुर्वेदी आदि ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। संगोष्ठी में अष्टछाप के विद्वान वक्ताओं ने इन कवियों की रचनाओं को संरक्षित करने के साथ ही इनकी स्थलियों को दिव्य और भव्य बनाने पर विचार- विमर्श किया गया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पुष्टिमार्ग के आचार्य पंकज बाबा ने कहा कि भारतीय संगीत की प्राचीन कला के धु्पद, धमार आदि रचनाओं और उसकी बंदिशों से भारतीय संगीत को समृद्ध बनाया गया। इसका श्रेय अष्टछाप के संस्थापक गोस्वामी विट्ठलनाथ जी एवं अष्टछाप के महाकवियों को जाता है। भारतीय संगीत के विकास में इनका योगदान अविस्मरणीय एवं स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने इन कवियों की वर्तमान स्थलियों के विकास के लिए उ.प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा किये जा रहे प्रयासों की प्रशंसा की।
संचालन करते हुए उ.प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद के ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डाॅ. उमेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि अष्टछाप के कवियों की स्थलियों का विकास कराने के दृष्टि से पिछले दिनों अवलोकन किया गया। कुंभनदास, गोविंददास, छीतस्वामी सहित अन्य कवियों की स्थलियों की दशा ठीक नहीं मिली। ब्रज तीर्थ विकास परिषद का प्रयास है कि इनके स्थल दिव्य रूप से दिखे। इनकी रचनाओं एवं साहित्य को सहेजा जाये। उन्होंने कहा कि पुष्टि मार्ग में अन्य सेवाओं के साथ-साथ संकीर्तन सेवा बड़ी ही महत्वपूर्ण समझी जाती है, जिसके बिना उपासना अधूरी ही रहती है।
पुष्टि मार्गीय सेवा पद्धति प्रमुख रूप से राग भोग और श्रृंगार इन तीनों पर आधारित है। मानव-शरीर में इन तीनों प्रवृत्तियों की प्रधानता रहती है। मनुष्य संसार-सुख की प्राप्ति में अपने अमूल्य देहयष्टि को नष्ट कर देता है। यदि वह राग, भोग और श्रृंगार को एकमात्र प्रभु सेवा में अर्पण कर देता है तो उसका परम कल्याण हो जाता है। इसी भाव से गो. विट्ठल नाथजी ने पुष्टिमार्गीय सेवा-पद्धति में इन तीन सेवाओं को प्रधानता प्रदान की हैं।
संगोष्ठी में गोपाल प्रसाद गोप ने पुष्टि मार्ग एवं कवि परमानंद दास पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि इनके 1300 से अधिक पद हैं। इन्हें संरक्षित किया जाये। उ.प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद अष्टछाप के कवियों पर जो पुस्तक प्रकाशित करना चाहता है यह बेहद प्रशंसनीय कार्य है।
भागवतवक्ता प.पूरन प्रकाश कौशिक ने कवि गोविंद दास पर व्याख्यान देते हुए कहा कि इनका जन्म भरतपुर के अंतरी गांव में हुआ। ये संगीत के उच्चकोटि के साधक थे। ब्रज की रज में ये भगवान का स्वरूप देखते थे। इनकी रचनाओं में प्रेम और भक्ति व निकुंज लीलाओं का वर्णन आता है। वक्ता विनोद दीक्षित ने पुष्टि मार्ग एवं कवि कृष्णदास पर अपने व्याख्यान में कहा कि वह अपनी रचनाऐं गोवर्धन नाथ जी को सुनाते थे। उन पर श्रीनाथ का विशेष अनुग्रह था। कृष्णदास जी एक कुशल प्रबंधक व महान कवि थे। वक्ता रासबिहारी कौशिक ने कवि कुंभनदास पर अपने व्याख्यान में बताया कि वे ग्राम जमुनावता में पैदा हुए थे। उन्होंने हरि रस निकुंज लीला पर काफी गायन किया था। अपनी रचनाओं पर प्रतिदिन संकीर्तन करते थे।
गौरव गोस्वामी ने चतुर्भुज दास जी के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी रचनाऐं गोवर्धन जी के प्रति बेहद प्रीति भरी थी।
वक्ता बसंत शास्त्री ने अष्ट छाप कवि छीत स्वामी के जीवन चरित्र की जानकारी देते हुए बताया कि वह चतुर्वेदी समाज से थे। वर्ष 1510 में इनका जन्म हुआ था। उनकी रचना ”भई गिरधर सौं पहचान……“ काफी प्रसिद्ध रही है। छीत स्वामी यह मानते थे कि विट्ठल नाथ जी भगवान श्रीकृष्ण के रूप में ब्रज मंे आए हैं। उनके गीतों में भगवान से पहले गुरु का महात्म्य ज्यादा रहा था। श्रीमद्भगवद् गीता वक्ता धीरेन्द्र चतुर्वेदी ने सूरदास पर अपना विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि सूरदास जी सहित समकालीन अष्टछाप के कवियों ने अपने बारे में लेखन नहीं किया। न उस समय ऐसी परम्परा थी। यही बजह है कि सूरदास जी के जन्म को लेकर भ्रांतियां है। जो शोध का विषय है।
संगोष्ठी में साहित्यकार कपिल देव उपाध्याय, आचार्य रास बिहारी, अशोक अज्ञ, कान्हा गोस्वामी, गौरव गोस्वामी, मोहनश्याम शर्मा, देवकी नंदन शर्मा, हरिबाबू ओम, डाॅ. रश्मि वर्मा, चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार व दीपक शर्मा आदि उपस्थित थे।