देहरादून : उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बन रही टनल में 12 नवंबर से फंसे 41 मजदूरों का रेस्क्यू के प्रयास जारी है। टनल के अंदर फंसे उन्हें आज 14वां दिन है। झारखंड के 15 मजदूर भी इसी टनल के अंदर फंसे हैं। राजधानी रांची से लगभग 30 किमी दूर ओरमांझी ब्लॉक के खिराबेड़ा गांव के 8 मजदूर उत्तरकाशी टनल में काम करने गये थे। 41 जिंदगियां कैद से आजाद होने को बेकरार हैं। हर कोई अच्छी खबर का इंतजार कर रहा है। मजदूरों को बाहर निकालने का उत्साह गुरुवार को दिनभर उतार चढ़ाव लेता रहा। सूरज चढ़ता गया और अड़चनों की वजह से मजदूरों के बाहर आने का इंतजार बढ़ता रहा।

आज शुक्रवार शाम तक मजदूरों के बाहर आने की उम्मीद है। ड्रिलिंग का काम शुरू हो गया। वहीं सुरंग के बाहर परिजन बेसब्री से अपनों के निकालने का इंतजार कर रहे हैं। बुधवार की रात को चले अभियान की रफ्तार से ये उम्मीद जताई जा रही थी कि बृहस्पतिवार की सुबह तक सभी 41 मजदूर सकुशल बाहर आ जाएंगे, लेकिन रात को अमेरिकन ऑगर ड्रिल मशीन की राह में लोहे के सरिये व गाटर आ गए जो टनल के भीतर के स्ट्रक्चर के लिए लगाए गए थे।
इससे मशीन का पुर्जा भी टूट गया। मशीन रोकनी पड़ी। इसके बाद एनडीआरएफ के जवान ने करीब 40 मीटर तक पहुंचे 800 मिमी पाइप के भीतर घुसकर रुकावट को देखा। उन्होंने इसे काटने की सलाह दी, जिसके लिए गैस कटर मंगाया गया। भीतर ऑक्सीजन कम होती है। गैस कटर चलाने पर ये और कम हो जाती है। लिहाजा, पहली टीम जब इसे काटने के लिए पहुंची तो वह सफल नहीं हो पाई।
मनोचिकित्सक मजदूरों के सामने 4 तरीके की समस्या देख रहे
मनोचिकित्सक टनल में फंसे मजदूरों के सामने 4 तरीके की समस्या देख रहे हैं। पहला डिप्रेशन- बहुत लंबे समय तक ऐसी जगह पर रहना जहां जीवन की उम्मीद लगभग न के बराबर थी। एंग्जायटी- उनके दिमाग में यह चल रहा होगा कि सुरंग से सुरक्षित बाहर निकल पाएंगे या नहीं, यह लंबे समय तक दिमाग में चलने पर अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। पैनिक अटैक- एंग्जायटी का लेवल हाई होने पर शरीर पर दिमाग का नियंत्रण खत्म हो जाता है। इसे ही पैनिक एंग्जायटी डिसऑर्डर कहते हैं. पीटीएसडी यानी पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर- यह लंबे समय तक अवसाद के रूप में दिमाग पर असर डालता है।

