- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 15 बाल पोर्नोग्राफिक सामग्री को प्रसारित करने के इरादे से संबंधित है
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहम फैसले में कहा कि डिजिटल उपकरणों पर बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी देखना, उसे डाउनलोड कर भंडारण करना पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध माना जा सकता है। बशर्ते संबंधित व्यक्ति का इरादा इसे साझा या प्रसारित करने का हो या वह इससे व्यावसायिक लाभ कमाना चाहता हो। इसी के साथ शीर्ष कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी सामग्री देखने या डाउनलोड करने को अपराध नहीं माना गया था।
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस नाम की संस्था की याचिका पर सुनवाई के बाद सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने फैसला सुनाते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं की विस्तृत व्याख्या की। पीठ ने युवाओं को सहमति और शोषण की स्पष्ट समझ देने के लिए व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करने पर जोर देते हुए केंद्र सरकार को इसके लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाने का सुझाव दिया।
यौन शिक्षा के बारे में कई गलत धारणाएं
पीठ ने कहा, देश में यौन शिक्षा के बारे में कई गलत धारणाएं हैं। माता-पिता और शिक्षकों समेत कई लोग रूढि़वादी विचार रखते हैं कि सेक्स पर चर्चा करना अनुचित, अनैतिक या शर्मनाक है। एक प्रचलित गलत धारणा यह है कि यौन शिक्षा युवाओं में संकीर्णता और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को बढ़ावा देती है। हालांकि शोध से पता चला है कि व्यापक यौन शिक्षा वास्तव में लोगों के बीच सुरक्षित व्यवहार को बढ़ावा देती है। किशोर और युवा वर्ग को इंटरनेट पर बिना फिल्टर वाली जानकारी तक पहुंच मिलती है, जो अक्सर भ्रामक होती है और अस्वस्थ यौन व्यवहार के बीज बो सकती है।
अदालतों में नहीं होगा ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने संसद को सुझाव दिया कि पॉक्सो एक्ट में संशोधन कर ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के स्थान पर ‘बाल यौन शोषण और दुव्र्ययवहार सामग्री’ का इस्तेमाल किया जाए। शीर्ष कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि वे बच्चों के यौन शोषण के मामलों में ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल न करें। पीठ ने कहा, बच्चों के खिलाफ गंभीर अपराध के लिए ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल उचित नहीं है। यह अपराध की पूरी सीमा को नहीं दर्शाता। पारंपरिक रूप से ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ कहे जाने वाले मामले में बच्चे का शोषण शामिल होता है। ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल अपराध को कमतर आंक सकता है, क्योंकि पोर्नोग्राफी को अक्सर वयस्कों के बीच सहमति से किया गया कार्य माना जाता है।
पॉक्सो एक्ट की धाराओं की व्याख्या
गलती से देखकर डिलिट करना पर्याप्त नहीं, सूचना देना जरूरी
1- पीठ ने कहा, पॉक्सो एक्ट की धारा 15 बाल पोर्नोग्राफिक सामग्री को प्रसारित करने के इरादे से संबंधित है। अगर कोई गलती से भी ऐसी सामग्री देखता है और डिलिट कर देता है, लेकिन इसके बारे में संबंधित अधिकारी को सूचित नहीं करता तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
2- धारा 15 की उप-धारा (2) में बाल पोर्नोग्राफी के प्रसारण, प्रचार, प्रदर्शन या वितरण करने वाले के साथ उसे भी दंडित करने का प्रावधान है, जो इनमें से किसी भी कार्य की सुविधा देता हो।
3- धारा 15 में चाइल्ड पोर्नोग्राफी वाली सामग्री रखना अपराध माना गया है। कोई ऐसी सामग्री रखता है तो उस पर पांच हजार रुपए तक जुर्माना लगेगा। दूसरी बार ऐसा अपराध करने पर 10 हजार जुर्माना और तीसरी बार तीन से पांच साल तक की कैद हो सकती है।
4- धारा 44 के तहत राष्ट्रीय और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग पर ऐसे मामलों की निगरानी का दायित्व है। यह दायित्व जागरूकता फैलाने तक सीमित नहीं है। बच्चों समेत जनता को यौन शिक्षा देना भी इसके दायरे में है।
यह है मामला
मद्रास हाईकोर्ट ने 28 साल के एक युवक के मामले में फैसला सुनाया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के बारे में बच्चों को जागरूक और शिक्षित करना चाहिए। इसकी बजाय उन्हें दंडित करना ठीक नहीं है। युवक पर आरोप था कि उसने फोन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड की और उसे देखा। हाईकोर्ट ने उसे आरोपों से बरी कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने युवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।