डिंडौरी : जबलपुर में एक पिता को अपने नवजात बच्चे का शव थैले में रखकर ले जाना पड़ा। उसने अस्पताल प्रबंधन से शव वाहन की मांग की, लेकिन प्रबंधन ने वाहन देने से मना कर दिया। ऐसे उसने नवजात का शव थैले में रखा और बस स्टैंड की ओर चल पड़ा। यहां से बस में सवार होकर डिंडौरी पहुंचा। रास्तेभर उसका दिल रोता रहा, लेकिन उसने आंसू नहीं आने दिए। दिल पर पत्थर रखकर बैठा रहा, क्योंकि बस वालों को पता चलता तो उसे उतार सकते थे।
दरअसल 13 जून को डिंडौरी के सहजपुरी गांव में रहने वाली जमनी बाई को प्रसव पीड़ा होने पर डिंडौरी जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था और प्रसव के बाद नवजात शिशु की हालत बिगड़ने पर उसे जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था, जहां उपचार के दौरान शुक्रवार को नवजात की मौत हो गई। परिजनों ने डिंडौरी वापस आने के लिए मेडिकल कॉलेज जबलपुर प्रबंधन से शव वाहन का इंतजाम कराने मिन्नतें कीं, लेकिन प्रबंधन द्वारा शव वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया। थैले में शव रखकर परिजन डिंडौरी बस स्टैंड में रिश्तेदारों के इंतज़ार में यहां-वहां भटक रहे थे, लेकिन डिंडौरी में भी कोई उनकी मदद के लिए सामने नहीं आया।
आर्थिक रूप से कमजोर सुनील धुर्वे ने बताया कि जब मेडिकल कॉलेज से शव वाहन नहीं मिला तो क्या करते। प्राइवेट वाहन का किराया चार से पांच हजार रुपए है, इसलिए हमने नवजात के शव को थैले में रखा। जबलपुर से डिंडौरी आने वाली बस में बैठ गए। दिल रो रहा था, लेकिन मजबूरी ये थी कि हम रो भी नहीं पा रहे थे। बस ड्राइवर और कंडक्टर को पता चल जाता कि हमारे पास बच्चे का शव है, तो वह हमें बस से उतार देते, इसलिए सीने में पत्थर रखकर बैठे रहे।
प्रशासन, सरकार और समाज के मुंह पर करारा तमाचा
मेडिकल कॉलेज के आसपास एक पूरा रैकेट काम करता है जो बॉडी को ले जाने में लंबी चौड़ी रकम मांगता है, लेकिन गरीब लोगों के पास शव वाहन के लिए पैसे नहीं होते हैं, जिस कारण उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। यह घटना प्रशासन, सरकार और समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो गरीबों की मदद के दावे करते हैं।