यदि आप सिनेमा, नाटक, रंगमंच से जुड़ी कथाओं में दिलचस्पी लेते हैं तो मेरे इस किस्से का भरपूर आनंद लेंगे। मथुरा के लोगों को नहीं मालूम कि एक जमाने में सम्पूर्ण उत्तर भारत में नौटंकी के मंच पर पांच दशक तक धूम मचाने वाली सुन्दर, शालीन, प्रतिभाशाली, विनम्र व अदभुत कलाकार मथुरा में निवास कर रही हैं। वे भले ही आयु के 85वें वर्ष में भले ही चल रही हों, लेकिन वे आज भी इस लुप्त हो रही कला को पुनर्जीवित करने के सपने में खोई-खोई रहती हैं।
पीलीभीत जिले के बीसलपुर शहर में सन १९३९ में जन्मीं कलाकार कमलेश लता को लाखों लोगों से मान-सम्मान और शोहरत खूब मिली लेकिन उन्होंने सदैव सरकारी तमगों की चाहत से अपने आप को दूर रखा, जबकि वे ‘पद्म भू ण या ‘पद्म श्री’ जैसी उपाधि से विभूषित होने की हकदार हैं।
कहते हैं कि नौटंकी की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुई। वैसे अकबर के नवरत्न अबुल फजल के ‘आईने अकबरी’ में नौटंकी का जिक्र मिलता है। 1910 के दशक तक हाथरस और कानपुर नौटंकी के महत्वपूर्ण केंद्र बन गए थे और प्रत्येक शहर ने नौटंकी की एक विशिष्ट शैली विकसित की थी। नौटंकी ने शुरू से ही किंवदंतियों, संस्कृत और फारसी रोमांस और पौराणिक कथाओं सहित साहित्य और परंपरा को विस्तृत रूप से मंच पर प्रदर्शित किया और इसे सबसे भावनात्मक तरीके से जनमानस तक पहुँचाया।
सबसे लोकप्रिय नौटंकी राजा हरिश्चंद्र, लैला मजनू, शीरीं फरहाद, श्रवण कुमार, हीर रांझा आदि रहीं जबकि पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर और रानी दुर्गावती जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित नौटंकियां भी काफी लोकप्रिय रहीं। कह सकते हैं, उत्तर भारत में बॉलीवुड से पहले ‘नौटंकी’ ही मनोरंजन का बड़ा माध्यम था
नौटंकी ने मनोरंजन के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य किया, साथ ही अपने किस्सों और कहानियों के भीतर नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों को स्थापित किया। उत्तर भारत में, नौटंकी ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान एक सुधारवादी भूमिका निभाई। देशभक्ति और पराक्रम की कथाओं वाले नाटकों का अभिनय करके नौटंकी कला ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक अभूतपूर्व योगदान दिया।
नौटंकी का असर लोगों पर ऐसा था कि मंच पर जब लैला मजनूं की प्रेम कहानी का मंचन होता था तो कई दृश्य देख दर्शकों में चीख-पुकार मच जाती थी। ऐसे हर पल में अभिनेता और दर्शक एक हो जाते थे और उनके बीच एक अबूझ रिश्ता कायम हो जाता था। कलाकार कमलेश लता के अभिनय की गहराई का भी यही आलम था।
कलाकार कमलेश लता अपने जीवन की कुछ घटनाओं का स्मरण करती हैं — ‘हरिश्चंद्र तारामती’ में तारामती का अभिनय करती तो अपने किरदार में इतना डूब जातीं, मुक्त कंठ से डायलॉग बोलती तो सामने बैठे दर्शकों की आँखों से आंसू झरने लगते। कमलेश लता जी आज भी नौटंकी ‘अमर सिंह राठौर’ का स्मरण कर रोमांचित हो उठती हैं।
वे कहती हैं – ‘अमर सिंह राठौर’ नौटंकी सैकड़ों बार गाँव के स्कूलों और मेलों-तमाशों में खेली गई। मैं अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी बनती थी। इस खेल (नौटंकी) की कहानी में सलावत खां वजीर धोखे से अमर सिंह का गला काटता है। हाड़ा रानी दहाड़ मार-मार कर विलाप करती है। ‘रानी बनी मैं मंच पर अपने सर को, शरीर को जमीन पर पटकती, दोहा, चौबाला, बहरतबील, दौड़ (नौटंकी में काव्यात्मक भाषा में लिखे डायलॉग के प्रकार) में विलाप करती तो दर्शक भाव विह्ळ हो जाते। दर्शकों से मिला यह प्यार मेरे जीवन का का सर्वोत्तम उपहार रहा। ”
कमलेश लता ने १४ वर्ष की आयु में नौटंकी की देहरी पर पहला कदम रखा और फिर जीवन भर इससे मुख न मोड़ा। सत्तर के दशक में मथुरा में आई तो नौटंकी मंडली के साथ लेकिन इसके बाद वे ब्रज की होकर रह गईं।
‘हाथरसी नौटंकी शैली में गायन प्रमुख रहा है, यहां अभिनय पर जोर न था। जबकि कानपुरी शैली में अभिनय प्रधान रहा है। वहां गायन कोई खास महत्व नहीं रखता। लेकिन मुझे दोनों में सामंजस्य बैठाना उचित लगा। तब मैंने ‘कमलेश कला मंच’ के नाम से अपना अलग ग्रुप बनाया और कानपुर शैली के अभिनय और हाथरस शैली के गायन को नौटंकी में डाला। दर्शकों ने इसे पसंद किया।’
कलाकार तकदीर में यकीन करते हैं, कलाकार कमलेश लता की तकदीर में होता तो वे बड़े परदे पर चली जातीं। एक बार मौका मिला। बॉलीवुड के एक निर्माता ने उन्हें नौटंकी में अभिनय करते देखा तो अपनी फिल्म ‘महामिलन’ में साइन किया। फिल्म बनी लेकिन निर्माता—निर्देशक की असामयिक मृत्यु और धनाभाव के कारण सिनेमाधरों तक पहुंच ही नहीं सकी। कमलेश जी ने उस फिल्म की एक फोटो अपने बैग से निकाल कर मुझे दिखाई।
उन्होंने बताया कि ‘उनके पति एक सफल होम्योपैथिक चिकित्सक थे, कलाकार नहीं थे। लेकिन रंगमच के चहेते ही नहीं, विशेषज्ञ भी थे। मेरी कला में पूरी रुचि लेते, सुझाव देते और इसे निखारने में मुझे मदद मिलती। फिल्मों के प्रभाव से नौटंकी में आई अश्लीलता और भौंडेपन की शुरूआत हुई तो तब हमने नौटंकी को इससे दूर करने के प्रयास किए। इसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिले।
इससे हमारी हिम्मत बढ़ी। उत्साह भी पैदा हुआ। हमने ‘ब्रज सारंग’ नाम की एक संस्था बनाई, नए कलाकार खोजे और उन्हें प्रशििक्षत किया। जब तक शरीर चला, नौटंकी के शो किए।
अब तो एक ही इच्छा है हमारी यह लोक कला (नौटंकी) कला बची रहे और एक बार फिर धूमधाम से निखर के आए।’
श्रेष्ठ अभिनय के लिए कलाकार कमलेश लता को छोटे—बड़े तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार मिले हैं। इनमें सबसे बड़ा पुरुस्कार १९९१ में ‘उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी’ का मिला राज्यपाल के कर कमलों से। अब वे हकदार हैं पद्म श्री या पद्म भूषण जैसे पद्म पुरस्कार की।
अफ़सोस और हैरत की बात यह है कि ब्रज की संस्कृति, लोक कला आदि के प्रचार-प्रसार के नाम पर पहले से स्थापित लोग सांसद हेमा मालिनी को हर साल अपने बायोडेटा देते रहते हैं और बड़े पुरस्कार पाने की जुगाड़ के लिए। लेकिन हेमा जी कौन बताये कि इस सम्मान का सच्चा हकदार मथुरा में एक समर्पित कलाकार कमलेश लता भी हैं ?
‘डॉ. अशोक बंसल की फेसबुक वाल से’