- अब तक दर्जनों शिकायतों को नजरअंदाज कर पीजी पोर्टल के माध्यम से यूपी सरकार के जनसुनवाई पोर्टल पर पहुंचने वाली शिकायतों का एक माह से पहले से नहीं लिया कोई संज्ञान
- बलदेव के किसानों की है मांग एक पैदल चलने वाला स्थाई अथवा अस्थाई पुल बने
दैनिक उजाला, बलदेव/मथुरा : निचली मांट ब्रांच गंग नहर से निकलने वाला बलदेव रजवाहा के समीप खडैरा मौजा के करीब 150 बीघा चक के 70 से 80 किसानों ने जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम एक छोटे से पैदल चलने वाले पुल की मांग की है। किसानों की इस मांग को भी सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर ने खोलकर भी नहीं देखा।
बीते माह किसानों ने यूपी सरकार के जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम से एक छोटे स्थाई अथवा अस्थाई पुल की मांग केन्द्र सरकार के पीजी पोर्टल और यूपी सरकार के जनसुनवाई पोर्टल पर की थी, लेकिन किसानों पिछले बीते माह से मांग अधूरी है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने किसानों कोई तवज्जों तक नहीं दी।
जनसुनवाई पोर्टल पर दर्ज हुई मांग सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता के पास पहुंची, लेकिन उन्होंने किसानों की मांग को नियमों में उलझाकर दरकिनार कर दिया। जबकि जो नियम किसानों के लिए दर्शाये गए वह बिल्कुल सच साबित होते हुए नहीं दिखते। अब अधिशासी अभियंता का रूख ऐसा हो गया है कि वह किसानों से बात तक नहीं करना चाहते।
इधर पीजी पोर्टल के माध्यम से यूपी सरकार के जनसुनवाई पोर्टल पर पहुंची मांग सिंचाई, जल संसाधन विभाग अपर मख्य सचिव/प्रमुख सचिव/सचिव ने प्रमुख अभियंता से नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करने के लिए निर्देश दिए। इसके बाद प्रमुख अभियंता ने मुख्य अभियंता को आवश्यक कार्यवाही करने को कहा, लेकिन चीफ इंजीनियर ने आज तक एक भी शिकायत पर एक्शन लेना उचित नहीं समझा।
भाजपा नेता ब्रजेश पांडेय कहते हैं कि जब यूपी सरकार किसानों के लिए प्रतिबद्ध है, तो अधिकारियों को क्या दिक्कत हो रही है। किसानों की समस्याओं का समाधान क्यों नहीं हो रहा है। अधिशासी अभियंता तथा एसई शिकायत सुन नहीं रहे। चीफ इंजीनियर भी किसानों की समस्याओं पर कोई अमल नहीं कर रहे हैं। आखिर क्यों? क्या किसानों की समस्या-समस्या नहीं है।
किसान सत्यदेव पांडेय कहते हैं कि स्थाई पुल बनाने के लिए अगर बजट नहीं है तो वो बाद में भी जारी हो जायेगा, लेकिन किसानों के लिए एक अस्थाई पुल भी तो तैयार हो सकता है। इसके लिए किसान आर्थिक सहयोग देने के लिए तैयार है। चार खंभे भी रखे हुए हैं, लेकिन कोई अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है।