लखनऊ : योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और अखिलेश के ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारों के बीच अब मायावती की भी एंट्री हो गई है। उन्होंने शनिवार को कहा- उपचुनाव में बसपा के उतरने से सपा-भाजपा की नींद उड़ गई है।
जनता का ध्यान भटकाने के लिए दोनों दल पोस्टरबाजी कर रहे हैं। भाजपा के बंटेंगे तो कटेंगे और सपा के जुड़ेंगे तो जीतेंगे के नारों की बजाय वास्तव में होना यह चाहिए कि बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे।
बसपा यूपी में सभी 9 सीटों पर होने वाले विधानसभा उप चुनाव में लड़ रही है।
मायावती ने कहा- बसपा इस बार उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इससे भाजपा और सपा दोनों की नींद उड़ी हुई है। क्योंकि, बसपा ने एकाध चुनाव को छोड़कर यहां काफी समय से उपचुनाव में हिस्सा नहीं लिया था। इसलिए दोनों पार्टियों (सपा और भाजपा) अभी तक जो उपचुनाव हो रहे थे, उनमें अंदर ही अंदर आपस में मिल-बांटकर चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन, इस बार उपचुनाव में जब बसपा भी मैदान में डटी है।
इससे इन दोनों पार्टियों और उनके गठबंधन दलों की परेशानी बढ़ गई है। इससे जनता का ध्यान बांटने के लिए भाजपा बटेंगे तो कटेंगे और सपा कह रही है कि जुड़ेंगे तो जीतेंगे। इन नारों को प्रचारित करने और पोस्टरबाजी करने में दोनों दल लगे हैं। वास्तव में होना यह चाहिए कि बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित भी रहेंगे।
अखिलेश ने कहा- भाजपा का ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी नाकामी का प्रतीक
शनिवार सुबह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने X पर पोस्ट कर बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा- उनका (बीजेपी) ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है। इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10% मतदाता बचे हैं, अब वो भी खिसकने की कगार पर हैं। इसीलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन ऐसा कुछ होने वाला नहीं है।
अखिलेश यादव साल 2012 से 2017 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे हैं।
अखिलेश यादव ने कहा- ‘नकारात्मक-नारे’ का असर भी होता है। दरअसल इस ‘निराश-नारे’ के आने के बाद उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताकतवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमजोरी की ही बातें कर रहे हैं। जिस ‘आदर्श राज्य’ की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में ‘अभय’ होता है, ‘भय’ नहीं। ये सच है कि ‘भयभीत’ ही ‘भय’ बेचता है, क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा।
देश के इतिहास में ये नारा ‘निकृष्टतम-नारे’ के रूप में दर्ज होगा। उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आखिरी ‘शाब्दिक कील-सा’ साबित होगा। देश और समाज के हित में उन्हें अपनी नकारात्मक नजर और नजरिए के साथ अपने सलाहकार भी बदल लेने चाहिए। ये उनके लिए भी हितकर साबित होगा। एक अच्छी सलाह ये है कि ‘पालें तो अच्छे विचार पालें’ और आस्तीनों को खुला रखें। साथ ही बांहों को भी, इसी में उनकी भलाई है। सकारात्मक समाज कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा।