• केंद्र सरकार ने शुक्रवार राजधानी दिल्ली के सराय कालेखां आईएसबीटी चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक कर दिया है

नई दिल्ली : झारखंड में विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर अहम भूमिका निभाते हैं। आदिवासी समाज को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना नहीं चाह रही है। आज देशभर में बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। आदिवासी समाज में उनको भगवान का दर्जा दिया गया है। इस खास मौके पर बीजेपी बिहार और दिल्ली से भी आदिवासियों को साधने में जुटी हुई है। देश की राजधानी दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह ने बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के जमुई में बिरसा मुंडा की जयंती पर आयो​जत कार्यक्रम में शामिल हो रहे है।

सराय काले खां चौक का नाम बदलकर किया ‘बिरसा मुंडा चौक’

केंद्र सरकार ने शुक्रवार राजधानी दिल्ली के सराय कालेखां आईएसबीटी चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जानकारी दी है। केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर ऐलान किया है कि ISBT बस स्टैंड के पास बड़ा चौक अब भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा।

अमित शाह ने किया बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण

दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह ने बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया। इस मौके पर अमित शाह ने कहा, भगवान बिरसा मुंडा का जन्म एक छोटे से गांव में हुआ था और उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर इस वर्ष को आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाएगा। भगवान बिरसा मुंडा निश्चित रूप से आजादी के महानायकों में से एक थे। 1875 में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करते समय उन्होंने धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाई थी। जब पूरा देश और दुनिया के दो तिहाई हिस्से पर अंग्रेजों का शासन था। उस समय उन्होंने धर्मांतरण के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया।

जानिए कौन थे काले खां?

14वीं शताब्दी के काले खां सूफी नाम के संत थे। वे शेर शाह सूरी के समय थे। इंदिरा गांधी एयरपोर्ट क्षेत्र में उनकी मजार भी बनी हुई है। सूफी संत काले खां के नाम पर दिल्ली में स्थित इलाके का नाम सराय काले खां रखा गया था। सराय काले खां के आस-पास के निजामुद्दीन, जंगपुरा, खिजराबाद, जंगपुरा एक्सटेंशन और लाजपत नगर आते हैं। जब लोग दिल्ली आते थे तो वे उन जगहों पर रूकर थोड़ी देर रूकर आराम करते थे, उन स्थानों को सराय कहा जाता था। सराय के आगे काले खां नाम जोड़ा गया था। इसके अलावा औरंगजेब के समय में भी एक काले खां हुए थे। बताया जा रहा है कि वे औरंगजेब के प्रमुख सेनापति थे। औरंगजेब के साथ उन्होंने कई युद्ध लड़े थे।

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