- गांवों के इन सूखों कुओं में कभी बाल्टियों की आवाजें गूंजा करती थी, बच्चे इन कुओं के आसपास खेला करते थे, आज ये कुएं गहरे गड्ढे में बदल गए हैं या फिर आट दिए गए
दैनिक उजाला, डेस्क : पृथ्वी दिवस (Earth Day) हर साल अप्रैल महीने की 22 तारीख को मनाया जाता है। ये सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख नहीं है। ये हमारे बच्चों और भविष्य के लिए चेतावनी है। जो हर साल हमारे सामने अप्रैल महीने की 22 तारीख को एक नोटिफिकेशन की तरह आती है। फिर भी लोग इस तारीख को यानी पृथ्वी दिवस को इग्नोर कर देते हैं। धरती जो कि हमारी माता भी कही जाती है। इस पर गंभीर संकट आ गया है। ये संकट हमारे पर्यावरण को लेकर है। इसमें सबसे प्रमुख पानी का संकट है।
भारत में इन दिनों गर्मी का मौसम है। कई राज्य अभी से जल संकट से जूझ रहे हैं। इसी धरती से हमें जल मिलता है। हम लोग ही इस जल का कद्र न करके इसका दोहन कर रहे हैं। इस कारण जल संकट रोज का रोज गहराता जा रहा है। गांवों में कभी कुएं जल का प्रमुख स्रोत हुआ करते थे। अब इन ‘कुओं का अंत’ हो गया है। गांवों की ये ‘सूखती विरासत’, धरती के लिए बड़ी चेतावनी है। आज गांवों में कुएं और नल तक सूख गए हैं। कल को ये पानी ही आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाएगा।

मानवीय त्रासदी में बदल रही पानी की कमी
राजस्थान और महाराष्ट्र ये दो प्रमुख राज्य हैं। जो गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। खासकर इन दोनों राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट है। सूखते कुएं, गिरता भूजल स्तर और अनियमित मानसून ने गांवों में पानी की कमी को एक मानवीय त्रासदी में बदल दिया है।
- राजस्थान के 50 जिलों में से 30 से अधिक में भूजल स्तर अत्यधिक दोहन के कारण खतरनाक स्तर तक पर आ गया।
- बीकानेर और बाड़मेर जैसे जिलों में पानी की कमी के कारण जमीन धंसने और खेतों में दरारें पड़ने लगीं।
- राजसमंद जिले के 293 गांवों में पेयजल संकट गहरा गया है।
- महाराष्ट्र में 75% ग्रामीण महिलाओं को पेयजल के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।
- पुणे के 23 गांवों में अंधाधुंध बोरवेल खनन और शहरीकरण के कारण जल संकट गहरा गया है।
- लातूर जिले में जल संकट के कराण धारा 144 लागू करनी पड़ी। पानी को लेकर हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं।
गांवों की आत्मा के रूप जाना जाता था कुआं
गांवों में कभी कुओं के किनारे बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं। महिलाएं और पुरुष इन कुओं में पानी भरते थे। गांवों में कुआं सिर्फ पानी का स्रोत नहीं था। वह गांव की आत्मा था। गांवों का कुआं सामुदायिक एकता का प्रतीक भी था। गांव के हर मुहल्ले में अपना-अपना कुआं होता था। सुबह से ही इन कुओं में बाल्टी की आवाजें गूंजने लगती थी, जो दोपहर, शाम और रात तक इन कुओं से पानी निकाला जाता था।
विलुप्त हो रही ये विरासत
आज गांवों के यहीं कुएं सूख चुके हैं। कुएं की गहराइयों में अब पानी की जगह सिर्फ सन्नाटा और उदासी है। गांवों में सूखते कुएं केवल जल संकट की कहानी नहीं, बल्कि एक विरासत के लुप्त होने की त्रासदी है।
कभी प्यास बुझाने वाले कुएं अब खुद हो गए प्यासे
कभी ये कुएं गांव की जीवनरेखा थे। ये कुएं लोगों की प्यास बुझाते और यहीं कुएं आज प्यासे हैं। अनियमित मानसून, बेतहाशा भूजल दोहन और जलवायु परिवर्तन की मार ने इन कुओं को बंजर कर दिया है। भूजल स्तर इतना गिर चुका है कि कुएं अब गहरे गड्ढों में बदल गए हैं।
अब के बच्चों को नहीं पता क्या हैं ये सूखे गड्ढे?
बच्चे जो कभी कुएं के पास खेलते थे। अब मोटर ऑन करके या टंकी के नल से पानी निकालते हैं। आज के ज्यादातर बच्चों को इन कुओं के बारे में पता ही नहीं है कि आखिर इन सूखे गड्ढों का इस्तेमाल किस चीज के लिए किया जाता था? इस जल संकट का दर्द सबसे ज्यादा हमारे बच्चों और भविष्य पर पड़ा है।
हमारी लापरवाही की गवाही
गांवों के ये सूखते कुएं सिर्फ पानी की कमी नहीं दर्शाते, वे हमारी लापरवाही की गवाही देते हैं। हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया है। भूजल को बिना सोचे खींचा, और वर्षा जल को संरक्षित करने की परंपराओं को भुला दिया है। तालाब सूख गए, पोखर खत्म हो गए, कुएं, जो कभी गांव का गौरव थे। अब सिर्फ एक दुखद स्मृति बनकर रह गए।
अभी भी बहुत कुछ बदला जा सकता है
इसलिए अभी भी उम्मीद बाकी है। आइये इस पृथ्वी दिवस (Earth Day) पर जल संकट को दूर करने का प्रण लिया जाए तो अभी भी बहुत कुछ बदल सकता है। शहर और गांव के लोग एकजुट होकर बारिश के जल संचयन को अपनाए, तालाबों को पुनर्जनन दें। भूजल के दोहन पर लगाम लगाएं, तो शायद इन कुओं में फिर से पानी बाल्टियों की आवाज गूंजे। बच्चों की हंसी फिर से कुओं की पट पर लौट आए। गांव के लोग फिर से इन खत्म हो चुके कुएं से पानी भर सकेंगे।
बच्चों के भविष्य के लिए बचाएं पानी
पानी का ये बचाव सिर्फ अभी के लिए नहीं ये हमारे बच्चों और भविष्य के लिए होगा। क्योंकि ये सूखते कुएं हमसे सिर्फ पानी नहीं मांग रहे, वे हमसे हमारी जिम्मेदारी, हमारी संवेदनशीलता और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर कल (भविष्य) की मांग कर रहे हैं।