कोलकाता : कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि नशे में नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट छूने की कोशिश करना, प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत रेप की कोशिश नहीं है। इसे गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश माना जा सकता है। हम आरोपी को जमानत दे रहे हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला तब आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐसे ही कमेंट को असंवेदनशील बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी।
19 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था- नाबालिग के ब्रेस्ट पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना या घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश रेप नहीं है।
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘ यह बहुत गंभीर मामला है। हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले जज में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी। इस पर रोक लगाते हैं।’
पूरा मामला समझें… ट्रायल कोर्ट ने 12 साल जेल की सजा सुनाई थी
- ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को POCSO एक्ट की धारा 10 और IPC की धारा 448/376(2)(c)/511 के तहत दोषी ठहराया था। कोर्ट ने उसे 12 साल जेल और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।
- आरोपी ने कहा कि वह दो साल से ज्यादा समय से जेल में बंद है। अदालत से इस मामले में जल्द फैसला आने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में उसे जमानत दी जाए। आरोपी ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि भले ही पीड़ित, जांच करने वाले डॉक्टर और अन्य गवाहों के सबूतों को सच माना गया हो, लेकिन आरोप साबित नहीं होते हैं।
- कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की डिवीजन बेंच की सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि पेनिट्रेशन के बिना IPC की धारा 376 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। ज्यादा से ज्यादा POSCO एक्ट की धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला बन सकता है। इसके लिए निर्धारित सजा 5 से 7 साल है।
- वकील ने कहा कि आरोपी ने इस सजा का बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया है, इसलिए उसे जमानत मिलनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने माना कि पीड़ित के दिए सबूतों में पेनिट्रेशन के संकेत नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि ब्रेस्ट पकड़ने की कोशिश रेप की कोशिश के बजाय गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- जज में संवेदनाएं नहीं थीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ‘वी द वूमेन ऑफ इंडिया’ नाम के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा था कि हाईकोर्ट ने करीब चार महीने तक मामले में फैसला सुरक्षित रखने के बाद सुनाया है। मतलब जज ने काफी विचार-विमर्श करने के बाद फैसला सुनाया। हमें दुख है कि इस विवादित फैसले में की गई टिप्पणियां संवेदनशीलता की कमी को दिखाती हैं।