- मोदी सरकार ने नए संसद भवन की पहली कार्यवाही में मंगलवार को ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ पेश किया
नई दिल्ली : महिला आरक्षण के लिए पेश विधेयक का नाम ‘128वां संविधान संशोधन विधेयक 2023’ है, जिसे मोदी सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ नाम दिया है।
विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा, सभी राज्यों की विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में ‘यथांसभव एक तिहाई सीटें’ महिलाओं के लिए आरक्षित होगीं। यानी अगर लोकसभा में 543 सीटें हैं, तो इनमें से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इन सीटों पर सिर्फ महिला उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकेंगी।
इसके लिए एक और प्रक्रिया से गुजरना होगा।। चूंकि ये संविधान संशोधन विधेयक है, इसलिए इसे पारित करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक चूंकि विधानसभा सीटों में भी बदलाव होगा, ऐसे में आधे से ज्यादा राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी। अगर सभी राज्यों की विधानसभा प्रभावित हो रही है तो उस राज्य की विधानसभा भी सरकार से मांग कर सकती है कि हमारी सहमति भी लीजिए।
विधेयक में कहा गया है कि ये सीधे जनता द्वारा चुने जाने वाले प्रतिनिधियों पर ही लागू होगा। इसका मतलब है कि ये आरक्षण राज्यसभा या सभी 6 विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। इस विधेयक में लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और एनसीटी दिल्ली की विधानसभा शामिल है।
विधेयक में साफ तौर पर लिखा है कि महिलाओं के लिए एक तिहाई रिजर्वेशन डिलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। विधेयक के कानून बनने के बाद जो पहली जनगणना होगी, उसके आधार पर परिसीमन होगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक 2026 से पहले परिसीमन लगभग असंभव है, क्योंकि 2021 में होने वाली जनगणना कोविड-19 की वजह से अभी तक नहीं हो सकी है।
विराग गुप्ता के मुताबिक अगर आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा के चुनाव समय पर हुए तो इसमें महिला आरक्षण पारित होने के बावजूद लागू नहीं हो सकेगा।
लोकसभा और विधानसभाओं में यह कानून जब लागू हो जाएगा, उसके बाद 15 साल तक अमल में रहेगा। उससे आगे रिजर्वेशन जारी रखने के लिए फिर से बिल लाना होगा और मौजूदा प्रक्रियाओं के तहत उसे पास कराना होगा। अगर 15 साल के बाद उस समय की सरकार नया बिल नहीं लाती है, तो ये कानून अपने आप खत्म हो जाएगा।
एससी-एसटी महिलाओं के लिए आरक्षण एससी-एसटी कोटे से ही मिलेगा। इसे एक उदाहरण से समझिए… इस वक्त लोकसभा में एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 131 है। महिला आरक्षण लागू होने के बाद इनमें से एक तिहाई यानी 44 सीटें एससी-एसटी महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। बाकी 87 सीटों पर महिला-पुरुष कोई भी लड़ सकता है।
इस विधेयक में ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
इसके 3 स्टेप्स होंगे… पहले ये बिल पारित होगा। इसके बाद जनगणना और फिर परिसीमन होगा। परिसीमन के बाद तय होगा कि कौन सी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होगी। सीटों का चुनाव रैंडम हो सकता है या महिलाओं की जनसंख्या के आधार पर भी हो सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक चूंकि ज्यादातर सीटों पर महिला-पुरुषों का रेश्यो लगभग बराबर होता है, इसलिए आरक्षित सीटें रैंडम चुनने की संभावना ज्यादा है। अगली बार के सीटों पर आरक्षण रोटेशन के आधार पर होगा और हर परिसीमन के बाद सीटें बदली जा सकेंगी।
इसे एक उदाहरण से समझिए- अभी लोकसभा में 543 सीटें हैं। महिला आरक्षण बिल लागू होने के बाद इनमें से एक तिहाई यानी 181 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी। रोटेशन सिस्टम के बाद हर अगले चुनाव में 181 सीटें बदल जाएंगी।
यानी 181 महिला सांसदों का टिकट कट जाएगा या वे अपनी मौजूदा सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएंगी। इसी तरह पिछले चुनाव की अनरिजर्व्ड 362 सीटों में से 181 सांसद चुनाव नहीं लड़ पाएंगे या उनकी सीट बदल जाएगी। इसका मतलब है कि हर चुनाव में 362 सांसदों का या तो टिकट कट जाएगा या उनकी सीटें बदल जाएंगी।
अगर कोई महिला, महिला आरक्षित सीट से चुनाव लड़ रही है तो वो दूसरी महिला आरक्षित सीट से चुनाव नहीं लड़ सकती। वो एक आरक्षित और एक अनारक्षित सीट पर चुनाव लड़ पाएगी या नहीं, इसका जिक्र विधेयक में नहीं है।
मौजूदा लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं पर इस विधेयक का कोई असर नहीं पड़ेगा। यानी अभी जितने सांसद या विधायक हैं, उनकी संख्या में बदलाव नहीं होगा। लोकसभा की 543 सीटों में से 181 पर तो महिला ही चुनाव लड़ेंगी। बाकी बची हुई सीटों पर हर वर्ग की महिलाएं चुनाव लड़ सकेंगी, वैसे ही जैसे अभी लड़ती हैं।