• उद्योगों से निकलने वाले विभिन्न रंगों के पानी को साफ करने के लिए जीएलए ग्रेनो कैंपस के प्रोफेसर ने किया शोध

दैनिक उजाला, ग्रेटर नोएडा : जीएलए विश्वविद्यालय ने शोध के क्षेत्र में भी अपनी धाक जमाई है। हजारों की संख्या में शोध कार्य देश के विकास की गति में सहायक बन रहे हैं। हाल ही में जीएलए विश्वविद्यालय ग्रेटर नोएडा कैंपस के रसायन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर का आधुनिक शोध एससीआई जर्नल्स में प्रकाशित हुआ है।

‘मैलाकाइट ग्रीन डाई का अल्ट्रासोनिक-सहायता प्राप्त अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमेट्रिक और स्मार्टफोन-आधारित जांच‘ विषय पर प्रकाशित शोध एससीआई जर्नल्स में 3 पाइंट 7 इंपेक्ट फेक्टर के साथ प्रभावी है। इस शोध में जीएलए विश्वविद्यालय ग्रेटर नोएडा कैंपस की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. भामिनी पांडे ने जिंक कॉपर लेयर्ड डबल ऑक्साइड नामक विशेष सामग्री के प्रयोग से पानी से हानिकारक रंग हटाने पर कार्य किया है।

डा. भामिनी

एससीआई जर्नल्स में प्रकाशित होने के बाद डा. भामिनी ने बताया कि यह शोध बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि यह प्रदूषित पानी को साफ करने का एक तेज़ और प्रभावी माध्यम है। अधिकतर कई उद्योगों में, रंग और रसायन पानी में मिल जाते हैं, जो कि पानी को पीने या समुद्री जीवन के लिए असुरक्षित बना देते हैं। जिंक कॉपर लेयर्ड डबल ऑक्साइड नामक विशेष सामग्री के प्रयोग से प्रदर्शित हुआ है कि करीब 30 मिनट में प्रदूषित पानी से लगभग 90प्रतिशत रंग हटा सकती है, जो कई अन्य तरीकों की तुलना में बहुत तेज़ है।

उन्होंने बताया कि पानी के प्रदूषण को मापने के लिए कई तरीके की मशीनों का प्रयोग किया जाता है, जो कि लाखों की कीमत की होती हैं। इस शोध में बताया गया कि एक मोबाइल एप से बहुत कुछ आसान हो सकता है। एप के माध्यम से प्रदूषित पानी का फोटो लेकर शोध करने में बहुत आसानी होगी।

जीएलए कैंपस के प्रतिकुलपति प्रो. दिवाकर भारद्वाज ने बताया कि यह बडे़ गर्व की बात है कि जीएलए ग्रेनो कैंपस के प्रोफेसर आधुनिक शोध कर रहे हैं और उन्हें प्रकाशित कराने में भी अह्म भूमिका में हैं। उन्होंने बताया कि डा. भामिनी और साथ में सहयोगी रहे अन्य संस्थानों के प्रोफेसर पूनम सिंह एवं रविंदर कुमार ने देश के विकास की गति में अच्छा रिसर्च किया है। यह शोध भारत की प्रगति के लिए बहुत उपयोगी है, खासकर जल प्रदूषण को नियंत्रित करने में। देखा जाता है कि भारत में कई कारखाने, जैसे कि कपड़े, चमड़ा और कागज बनाने वाले कारखाने, नदियों और झीलों में हानिकारक रंग छोड़ते हैं, जिससे पीने के पानी के स्रोत प्रदूषित होते हैं।

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