- जीएलए में आयोजित हुई काकोरी के महानायक पर गोष्ठी में क्रांतिवीरों की मुख्य पुस्तकों का हुआ विमोचन
दैनिक उजाला संवाद, मथुरा : स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा में काकोरी रेल कार्यवाही की 100वीं वर्षगांठ पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन उत्तर प्रदेश में राजकीय स्तर पर मनाये जा रहे काकोरी रेल कार्यवाही के अंर्तगत किया गया। कार्यक्रम में पूर्व विधायक, स्वंतत्रता सेनानी, लेखक तथा समाज सेवी हुकम चंद्र तिवारी मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने काकोरी रेल कार्यवाही के बारे में अपने संस्मरण साझा किये। साथ ही ‘बलिदानी नींव के पत्थर‘ पुस्तक का विमोचन किया।
गोष्ठी कार्यक्रम का शुभारम्भ काकोरी कांड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, अश्फाक उल्ला खां, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल तथा रोशन सिंह के चित्रपट के समक्ष के मुख्य अतिथि पूर्व विधायक हुकुम चंद्र तिवारी, जीएलए के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार, एसोसिएट डीन एकेडमिक डा. आषीश शुक्ला, पुस्तकालयध्यक्ष डा. राजेश भारद्वाज ने पुष्प अर्पित कर उनके पद चिन्हों पर चलने का संकल्प लिया।
हुकुम चंद्र तिवारी ने काकोरी के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां, रोशन सिंह एवं राजेंद्र नाथ लाहड़ी को याद करते हुए काकोरी मामले को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर बताया। इस रेल कार्यवाही को उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के जागरण का एक केंद्र बिंदु बताया और आगे कहा कि इस कार्यवाही से भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन को बहुत गति मिली और सभी आजादी के क्रांतिकारियों को एक मंच पर ला दिया और समाज के शिक्षित वर्ग को भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया। काकोरी की गाथा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक आदर्श बनी और आगे चलकर क्रांतिकारियों ने भारत से अंग्रेजों के पाँव उखाड़ दिए। उन्होंने क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि चंद्र शेखर आजाद क्रांतिकारियों के सेनापति थे। अंग्रेजों के खौफ और दमन नीतियों के खिलाफ कांतिकारियों ने डटकर मुकाबला किया।
उन्होंने बताया कि उनके द्वारा वर्ष 1981 में मथुरा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का राष्ट्रीय सम्मेलन कराया था। इसके बाद 1984 में भी राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन मथुरा में कराया था। सम्मेलन में राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी की बहन शास्त्री देवी उपस्थित हुईं। उनके साथ उनके विकलांग बेटे ओमप्रकाश भी थे। बहिन काफी गरीब थीं। उस हालात में लगभग 6 महीने दोनों मां बेटा को अपने घर रखा। उस समय शहीद राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में बहुत सारी जानकारी बहिन से प्राप्त की। इसके अलावा शहीद भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह को भी अपने घर पर लेकर आए थे। शहीद चंद्रशेखर की मां भी घर आई थीं। शहीद की मां का नाम जानकी देवी था। क्रान्तिकारी बाबा पृथ्वी सिंह आजाद, परमानंद झांसी वाले, क्रांतिकारी शिव वर्मा समेत तमाम क्रांतिकारियों को मथुरा बुलाया था।
प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने कहा कि हम उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों के कारण ही आज हम सभी एक आजाद भारत में आजादी का जश्न मना पा रहे हैं। आज भी कई देश ऐसे हें जहां गुलामी में लोग जीवन-यापन कर रहे हैं। अधिकतर देखा जाता है कि लोग फिल्म सितारों के बारे में अधिक जानकारी रखने में रूचि रखते हैं, लेकिन क्रांतिवीरों में वह कुछ नहीं जानते, लेकिन यह हमारी सबसे बड़ी भूल है। वाकई अगर क्रांतिवीरों के बारे में आज युवा पीढ़ी ने जान लिया तो आगे जीवन जीना और भी सरल हो जायेगा।
कार्यक्रम के आयोजक पुस्तकालयध्यक्ष डॉ. राजेश भारद्वाज ने बताया कि काकोरी रेल कार्यवाही की शताब्दी समारोह में ये पहला कार्यक्रम है, जिसमें पुस्तकालय की तरफ से देश के स्वतंत्रता सेनानियों एवं काकोरी रेल कार्यवाही के शहीदों पर पुस्तक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय आगे की श्रंखला में ऐतिहासिक प्रेरक संवाद, पुस्तक विमोचन एवं संगोश्ठियों का आयोजन करेगा। जिससे स्वतंत्रता सेनानियों के किस्सागोई इत्यादि कार्यक्रम में शामिल किये जायेंगे।
कार्यक्रम के दौरान ही पूर्व विधायक हुकुमचंद्र तिवारी द्वारा लिखी गई ‘बलिदानी नींव के पत्थर‘ पुस्तक का विमोचन किया गया। तिवारी ने बताया कि पुस्तक में ब्रज के क्रातिवीरों के बारे में बताया गया है। इसके अलावा ‘शहादत के बेताब आशिक‘ पुस्तक की 10 प्रति जीएलए के केन्द्रीय पुस्तकालय को भेंट की। इसके चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार ने वृंदावन कुंभ 2021 पर लिखी ‘ब्रज वैभव‘ पुस्तक भेंट की।
कार्यक्रम में कुलसचिव अशोक कुमार सिंह, उप पुस्तकालयध्यक्ष डा. शिव सिंह एवं पुस्तकालय के सभी सदस्यों का बहुत योगदान रहा।