- बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और परिवार के 7 लोगों की हत्या के केस में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है
नई दिल्ली : बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और परिवार के 7 लोगों की हत्या के केस में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 11 दोषियों सजा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। बता दें कि पिछले साल गुजरात सरकार ने आरोपियों को सजा में छूट देते हुए जेल से रिहा कर दिया गया था। इसके बाद बिलकिस बानो ने सुप्री कोर्ट का रुख अपनाया था। बता दें कि न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 11 दिन की सुनवाई के बाद दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
तीन मार्च 2002 में गोधरा दंगों के दौरान गुजरात मेंदाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था। उस समय पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो 21 साल की थी। दंगाइयों ने बिलकिस बानो के परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी थी। इसमें बिलकिस की तीन वर्षीय बेटी भी शामिल थी।
गुजरात सरकार ने 1992 माफी नीति के तहत 15 अगस्त 2022 को गैंगेरेप के 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। गुजरात सरकार ने कहा था कि यह सभी 14 साल की सजा काट चुके हैं और इनके बर्ताव, व्यवहार और उम्र को देखते हुए इन्हें रिहा किया जा रहा है। उम्रकैद में न्यूनतम 14 साल की सजा होती है। यह इन्होंने पूरा कर लिया है।
बता दें कि सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में ‘‘चयनात्मक रवैया’’ नहीं अपनाना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार तथा समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
किसने दायर की है याचिका
इस मामले में बिलकिस की याचिका के साथ ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है। तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों की सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।