नई दिल्ली : एक महिला ने 29 हफ्ते के गर्भ को खत्म करने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है, जिसके बाद CJI की अध्यक्षता वाली पीठ ने एम्स के डॉक्टरों की एक टीम को जांच करके रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों की टीम ने सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट पेश कर दी है।
इसके बाद आज शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि “एम्स के डॉक्टरों ने हमें बताया कि 80% संभावना है कि बच्चा जीवित निकलेगा। इसके बाद इसे नवजात शिशु की देखरेख में रखना होता है।” इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि “क्या वह इस रिपोर्ट से अवगत हैं? यह अबॉर्शन का मामला नहीं है जैसा कि हम पहले इस तरह के मामले देख चुके हैं।”
याचिकाकर्ता द्वारा बच्चे को स्वीकार करने की अनिच्छा के बाद CJI धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी से गर्भवती महिला के साथ बातचीत करने और भविष्य के लिए मार्गदर्शन करने के लिए सहायता मांगी हैं।
बच्चे को मारने के बराबर होगा गर्भपात
पीठ ने ASG ऐश्वर्या भाटी के साथ पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “यह गर्भपात 29 हफ्ते के बच्चे को मारने के बराबर होगा।” वहीं पीठ ने तुषार मेहता के साथ एम्स की रिपोर्ट की एक प्रति शेयर की और उन्हें याचिकाकर्ता के वकील के साथ बैठकर कोई रास्ता सुझाने के लिए कहा है।