एक्रॉ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को पश्चिम अफ्रीका के देश घाना पहुंचे। घाना की उनकी यह पहली यात्रा थी। भारत से करीब 8 हजार किलोमीटर दूर घाना में ‘गा’ समुदायों के बीच लोगों की मौत पर जश्न मनाने की परंपरा है। यहां अंतिम संस्कार के लिए डिजाइनर ताबूत बनाए जाते हैं।
घाना में अनोखे ताबूत बनाने की परंपरा गा समुदाय में शुरू हुई। कारीगर सेथ काने कोई ने इसे लोकप्रिय बनाया। सेथ काने कोई ने गा समुदाय के राजा के लिए एक भव्य पालकी बनाया था। उनकी मौत के बाद उन्हें वैसी ही पालकी में दफनाया गया। यहीं से मौत के बाद फैंसी ताबूतों बनाने की परंपरा शुरू हुई।
इन ताबूतों को ‘फैंटेसी कॉफिन्स’ कहा जाता है, और ये मृतक व्यक्ति के पेशे, शौक या जीवन से जुड़ी चीजों के आकार में बनाए जाते हैं।
तस्वीरें के जरिए घाना की ताबूत परंपरा

घाना में एक पुजारी और मछुआरे को 2009 में नीले रंग की एक बड़ी केतली के अंदर दफनाया गया था। घाना में जीवन और मृत्यु को एक ही चक्र के हिस्से के रूप में देखा जाता है।

घाना में नुंगुआ के सुप्रीम ट्रेडिशनल मिलिट्री लीडर का 2024 में शेर के आकार के ताबूत में अंतिम संस्कार किया गया। आमतौर पर ताबूत का डिजाइन मृतक की जिंदगी के किस्से से जुड़ा होता है।

2019 में घाना के ग्रेटर एक्रॉ में एक अनानास बेचने वाले को अनानास के आकार के ताबूत में उसकी कब्र पर ले जाया गया। इसी तरह मृतक के पेशे के मुताबिक भी ताबूत का आकार होता है।

2024 में घाना के सेंट्रल रीजन में क्रैब नाम के एक बिल्डर के लिए केकड़े के आकार का ताबूत बनाया गया था। कुछ साल पहले तक घाना में डिजाइनर ताबूत हाथों से ही बनाए जाते थे।

घाना के ग्रेटर एक्रॉ में एक चीफ के लिए 2024 में व्हेल शार्क का ताबूत बनाया गया था। सबसे बड़ी और ताकतवर शार्क होने के चलते व्हेल शार्क को शुभ का प्रतीक माना जाता है।

2023 में घाना रेलवे कंपनी के एक कर्मचारी की मौत पर उसके लिए रेल इंजन जैसा ताबूत बनाया गया था। ताबूत बनाने वाले कारीगर यहां आमतौर पर छोटी वर्कशॉप में काम करते हैं।

2015 में घाना के सेंट्रल रीजन में एक ड्राइवर को उसके बेडफोर्ड ट्रक की तरह दिखने वाले ताबूत में दफनाया गया था। आमतौर पर ताबूत का डिजाइन मृतक का परिवार तय करता है।

घाना में ताबूत के साथ डांस करने की भी परंपरा है, जिसकी शुरुआत अंतिम संस्कार करवाने वाले बेंजामिन ऐडू ने की थी। 2017 में एक परिवार ने अपने परिजन की मौत पर ताबूत डांसर्स बुलाए थे।

2024 में ग्रेटर एक्रॉ में एक मछली विक्रेता के लिए मछली के आकार का ताबूत बनाया गया था। हालांकि उसकी पूंछ कब्र के लिए बहुत लंबी थी तो उसे काटना पड़ा।

अंतिम संस्कार से एक रात पहले, मृतक के परिवार ‘ले आउट’ समारोह आयोजित करते हैं, जिसमें शव को श्रद्धांजलि देने के लिए लोग आते हैं। ले आउट की यह तस्वीर ग्रेटर एक्रॉ में 2024 की है।

घाना में अंतिम संस्कार का जश्न इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि लोगों का मानना है कि मौत पुनर्जन्म की शुरुआत है और मृतक को एक शानदार विदाई मिलनी चाहिए।

स्थानीय भाषा में ताबूतों को अबेबुउ अडेकाई कहा जाता है। घाना में पहला अबेबुउ अडेकाई 1950 के दशक में एक आदिवासी नेता के लिए कोको की फली के आकार में बनाया गया था।

घाना के ग्रेटर एक्रॉ स्थित एशी में सेठ केन क्वेई नाम के बढ़ई को ताबूत स्टूडियो शुरू करने का आइडिया आया। केन के वर्कशॉप ग्रेटर अकरा में आज भी लोकप्रिय हैं।

केन के वर्कशॉप में उनकी दादी के लिए फ्लाइट के आकार का ताबूत बनाया गया था, जिन्होंने कभी हवाई यात्रा नहीं की थी, लेकिन वे उस समय सफर के इस नए तरीके से काफी खुश थीं।