- राष्ट्रसंत तपोमूर्ति ब्रह्मलीन गीतानंद महाराज की 20 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर देश विदेश से आएंगे अनुयाई
दैनिक उजाला, मथुरा : राष्ट्रसंत तपोमूर्ति ब्रह्मलीन गीतानंद महाराज की 20 वीं पुण्यतिथि वृंदावन के गीता आश्रम में 24 नवम्बर (रविवार) को मनाई जाएगी, जिसमें देश-विदेश से उनके अनुयाई बड़ी संख्या में भाग लेंगे।
मुमुक्षु मंडल व गीता आश्रम वृन्दावन के प्रमुख एवं महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी अवशेषानन्द महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन तपोमूर्ति गीतानंदजी महाराज की 20 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर गीता आश्रम वृंदावन में एक वृहद कार्यक्रम 24 नवम्बर (रविवार) को आयोजित होगा, जिसमें देश के जाने माने संत, भगवताचार्य, विद्वान, हाईकोर्ट के जस्टिस, अधिकारी, समाजसेवी, शिक्षाविद भाग ले रहे हैं। इस अवसर पर भगवत सेवा में लीन साधुओं को जहां ऊनी वस़्त्रों एवं कंबल आदि का वितरण किया जाएगा, वहीं साधन विहीन लोगों को भी यह सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी एवं ब्रज क्षेत्र का विशाल भंडारा आयोजित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि रविवार को सुबह 10 बजे से 11.30 तक श्रद्धांजलि सभा तथा पूर्वाह्न 11.30 बजे से भंडारा आयोजित किया जायेगा।
डॉ. स्वामी अवशेषानंद महाराज ने बताया कि ब्रह्मलीन संत गीतानन्द महाराज ने अपने जीवन की अंतिम के आखिरी समय तक जनहित कार्यों से समाज के प्रत्येक वर्ग की मदद करने का प्रयास किया था। उत्तर भारत के वे ऐसे महान संत थे जो घट-घट में भगवान के दर्शन करते थे तथा जिनका कार्य क्षेत्र उनके द्वारा देश के विभिन्न भागों में स्थापित किये गए आश्रमों के साथ साथ आश्रम के बाहर भी था। उनकी आराधना का मूल मंत्र था ’’प्रमु तुम हरौ जनन की पीर’’।
वे ऐसे महान संत थे जिन्हे गीता न केवल कंठस्थ थी बल्कि गीता को उन्होंने अपने जीवन में उतारा था। गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है इसलिए उन्होंने गोशालाओं की स्थापना की तो शिक्षा के लिए संस्कृत पाठशाला, चिकित्सा के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रकार के शिविरों का आयोजन, संतों के लिए अन्न क्षेत्र, वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम की स्थापना, हरिजन बच्चों के लिए हरिजन छात्रावास, प्राकृतिक आपदा में पुनर्वास एवं राहत कार्य इस महान संत के त्यागमय जीवन की कहानी के पन्ने बोलते हैं। वृन्दावन की पावन धरती पर चैतन्य महाप्रभु, बल्लभाचार्य, रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट, जैसे संतों ने यदि धर्म की ध्वजा फहराई और श्यामाश्याम की लीलाओं के गूढ़ रहस्य को समाज के कोने कोने तक पहुंचाया तो बीसवीं शती में देवरहा बाबा, श्रीपाद बाबा, आनन्दमयी मां,स्वामी अखण्डानन्द, स्वामी वामदेव, नीम करौली बाबा, जैसे संतों ने सनातन धर्म पर आए संकट से समाज को निकालकर एक दिशा दी।
स्वामी गीतानन्द महराज ने इससे अलग हटकर गीता के रहस्य को मानवजीवन में उतारने के मूलमंत्र को इस प्रकार प्रस्तुत किया कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह से सहज ही निकल पड़ा था कि यदि अन्य संत इसी भावना को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करें तो भारत अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर सकता है। कारगिल युद्ध के बाद प्रधानमंत्री रक्षा कोष में जमा करने के लिए जब इस संत ने 11 लाख रूपये की थैली पूर्व प्रधानमंत्री स्वय अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपी तो वाजपेयी अभिभूत होकर उक्त प्रतिक्रिया व्यक्त कर गए पर अहंकार से कोसों दूर इस महान संत ने यह कहकर वाजपेयी को और आश्चर्यचकित कर दिया था कि इसमें उनका कुछ भी योगदान नही है। उन्होंने तो वही काम किया है जो एक पोस्टमैन करता है। यह धनराशि उनके शिष्यों की है जिसे उन्होंंने प्रधानमंत्री रक्षा कोष को दिया है। उनका सिद्धान्त था कि दान इस प्रकार दिया जाना चाहिए कि दाहिने हांथ से दिये गए दान का पता बांए हाथ को भी न चल सके।
स्वामी गीतानन्द महाराज दीपक की तरह थे जिन्होंने न केवल अपने शिष्यों को बल्कि सम्पूर्णमानवता को अंधकार से निकालकर समाजसेवा का ऐसा सन्मार्ग दिखाया जो वास्तविक मोक्ष का साधन है। उनका कहना था कि भगवत गीता मानव जीवन के जीने का विज्ञान है। गीता के रहस्य एवं चमत्कार को मानव अपने जीवन में उतारकर ही उसकी महत्ता और उपयोगिता का अनुभव कर सकता है। गीता मानव को जन्म से लेकर मृत्यु तक हर परिस्थिति से मुकाबला करने और उसमें दी गई अच्छाइयों को उतारने की शिक्षा देती है। स्वामी गीतानन्द महराज ने गीता पर प्रवचनों के माध्यम से समाज को बताया कि मनुष्य अपने कार्य एवं साधना से मानव की सेवा किस प्रकार कर सकता है।
उन्होंने वृन्दावन की पावन भूमि से गीता के संदेश की ऐसी अमृत वर्षा की थी कि आज के प्रतियोगितापूर्ण समय में इसका रसास्वादन करने के लिए महाराजश्री के पास जो भी आया उसके मन को ऐसी शांति मिली कि उसके लिए वृन्दावन का अनूपयति गीता आश्रम ही तीर्थ बन गया। कहा जाता है कि संत भगवत शक्ति का एक स्वरूप होता है। जैसे जल का सहज स्वभाव हर व्यक्ति को शीतलता देकर उसकी तृष्णा को बुझाना होता है उसी प्रकार संतों का स्वभाव दु:खी और संतृप्त जीवों पर करूणा कर उन्हें कल्याणकारी मार्ग की ओर अग्रसर करने का होता है। ब्रम्हलीन संत गीतानन्द महाराज इन्ही विशेषताओं के कारण अपने शिष्यों के प्रेरणा के श्रोत बन गए।