लखनऊ : इस प्रदेश में पुलिस के सामने या उनकी कस्टडी में पहले भी कई हत्याएं हो चुकी हैं। बिजनौर, कानपुर, लखनऊ और मेरठ में भी इसी तरह पुलिस को चुनौती देते हुए हत्याएं की गई थीं। वैसे, इस घटना ने करीब सत्रह साल पहले हुए रफीक हत्याकांड की यादें ताजा कर दी है। कुख्यात डी-2 गिरोह के सरगना रफीक की भी इसी तरह पुलिस अभिरक्षा में दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी।
साल 2005 में कुख्यात अपराधी रफीक को एक स्पेशल ऑपरेशन के तहत में यूपी पुलिस ने कोलकाता से धर दबोचा। एसटीएफ के सिपाही धमेंद्र सिंह चौहान की हत्या के मामले में उसे कोलकाता से गिरफ्तार कर रिमांड पर कानपुर लाया गया था। यहां अदालत के आदेश पर उसे एके-47 की बरामदगी के लिए जूही यार्ड के पास ले जाया गया। इसी जगह विरोधी गुट के लोगों ने पुलिस अभिरक्षा में ही रफीक पर हमला किया और ताबड़तोड़ फायरिंग कर उसकी हत्या कर दी।
बिजनौर में अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए साहिल नाम के युवक ने कोर्ट के भीतर दो लोगों की हत्या कर दी थी। साहिल के पिता के हत्यारोपितों को तिहाड़ जेल से बिजनौर पुलिस लेकर पहुंची थी। इसकी जानकारी होने पर साहिल ने कोर्ट में पहुंचकर आरोपित शाहनवाज और जब्बार पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। करीब 20 राउंड गोलियां चलीं और दोनों की मौके पर ही मौत हो गई।
लखनऊ के सआदतगंज में बेटे की हत्यारों को सजा दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे श्रवण साहू की पुलिस की सुरक्षा में हत्या कर दी गई थी। श्रवण घर पर मौजूद थे और बाहर पुलिसकर्मी सुरक्षा दे रहे थे। इस बीच बाइक सवार बदमाश आए और कई राउंड गोलियां चलाकर श्रवण की हत्या कर दी।
मेरठ में करनावल-सरूरपुर मार्ग पर रजवाहे के पास हुए तिहरे हत्याकांड के गवाह नितिन चिंदौड़ी की कचहरी परिसर में हत्या कर दी गई थी।