- अथिति बोले जीएलए में आयोजित कार्यक्रम की श्रृंखला बहुत सराहनीय कदम, विद्यार्थियों को मिलेगी इतिहास की जानकारी
दैनिक उजाला, मथुरा : जीएलए विश्वविद्यालय पुस्तकालय आयोजित काकोरी रेल कार्यवाही की 100वीं शताब्दी समारोह श्रंखला के अंतर्गत स्वतंत्रता संग्राम के जीवंत पद-चिन्ह पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।
अभिनन्दन समारोह में स्वतंत्रता सेनानी प. रामकिशन को जीएलए विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने हुकम चंद्र तिवारी, डॉ. अनीता चौधरी एवं डॉ. राजेश भारद्वाज की उपस्थिति में शाल मिठाई, समृति-चिन्ह एवं अभिनन्दन पत्र देकर सम्मानित किया।
ऐसा माना जाता है कि प. रामकिशन शर्मा ब्रज क्षेत्र के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी हैं।
संगोष्ठी कार्यक्रम का शुभारम्भ गणेशी लाल अग्रवाल, स्वतंत्रता सेनानियों एवं माँ सरस्वती के चित्रपट के समक्ष पुष्प अर्पित कर किया गया। मुख्य अतिथि, स्वतंत्रता सेनानी पूर्व विधायक पंडित रामकिशन शर्मा, मुख्य वक्ता पूर्व विधायक हुकम चंद्र तिवारी, विशिष्ट वक्ता डॉ. अनीता चौधरी वरिष्ठ लेखिका एवं अध्यापिका एवं जीएलए विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रताप सिकरवार, पुस्तकालयअध्यक्ष डॉ. राजेश भारद्वाज ने महानायकों का स्मरण किया।
प. रामकिशन शर्मा ने अपने जीवन की कुछ बातें साझा की, जिसमें उन्होंने बताया की उनके द्वारा 14 साल की उम्र से ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया था। उन दिनों की याद करते हुए बताया कि आज़ादी के जुलुस में वो खुद बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लेते थे। कई बार आज़ादी के लिए जेल भी गए और प. जी ने कभी जातिवाद का समर्थन नहीं किया। प. जी बताते हैं कि वो कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। प. जी ने बताया वो 4 बार विधायक और 1 बार सांसद भी रहे, जिसमें उन्होंने अपने चुनाव के लिए एक भी पैसा खर्च नहीं किया। उनको राजनीतिक जीवन में दल – बदलने का, मुख्यमंत्री पद का प्रलोभन भी दिया गया, लेकिन उन्होंने कभी अपने आदर्श और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और हमेशा राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखा।
हुकम चंद्र तिवारी ने पंडित जी की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 3 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला पर उन्होंने राष्ट्र हित के लिए उसे स्वीकार नहीं किया। पंडित जी के बारे में बताते हुए तिवारी जी भावुक हो गए।
उन्होंने बताया की जेल में रहते हुए भी प. रामकिशन जी ने अपने उसूलों को सर्वोपरि रखते हुए बीमार माँ से मिलने भी नहीं गए और पैरोल पर जाने से भी मना कर दिया। पंडित रामकिशन भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़कर लगातार संघर्ष करते हुए समाजवादी आंदोलन के शताब्दी पुरुष कहलाये। उनकी गतिविधियों की शुरुआत एक स्कूल छात्र के रूप में भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी टोपी पहन कर शामिल होने से हुई। गांधी टोपी तब अंग्रेज और राजशाही के प्रतिकार के रूप में जानी जाती थी। भारत छोड़ो आंदोलन के नायक जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ विभिन्न आंदोलनों में जेल गए थे।
चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे रामकिशन के पानी के लिए आंदोलन को पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की पहली पुकार माना जाता है। ये आवाज आज राजस्थान में40 हजार करोड़ रुपए की स्कीम का रूप ले चुकी है। वो दुनियां के सबसे बुजुर्ग पानी के अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों में से एक हैं।
जीएलए के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता जी ने बताया प. जी जैसे महान सेनानियों से मिलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता सेनानी वीर नायक हैं। जिन्होंने ब्रिटिश शासन से हमारे देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी। ये योद्धा साहस और दृढ़ संकल्प के प्रतीक हैं। हमें देश के लिए एकता और विभिन्न मूल्यों के बारे में सिखाते हैं। ये स्वतंत्रता सेनानी भारतीय इतिहास में रोल मॉडल की तरह हैं। हमें एकता बलिदान और देशभक्ति का महत्व सिखाते हैं।
डॉ. अनीता चौधरी ने स्वतंत्रता की लड़ाई में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के योगदान बारे में विस्तार से बताया और अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। डॉ. अनीता ने जलियांवाले बाग में घायल स्वतंत्रता सेनानी के द्वारा तिरंगा की शान में स्वरचित एक कविता प्रस्तुत की।
पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. राजेश भारद्वाज ल ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए माखनलाल चतुर्वेदी की रचित पंक्तियाँ ‘मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक, मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक’ को सुनाते हुए और सभी अतिथिगणों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। उन्होंने बताया कि सेनानियों के बलिदान से हमें प्रेरणा मिलती है और हम उनकी विरासत पर गर्व महसूस करते हैं ये उन मार्गदर्शक सितारों की तरह हैं, जो खुद तो बुझ गए लेकिन हमें आज़ादी का प्रकाश दे गए।
कार्यक्रम में जीएलए विश्वविद्यालय के कुलसचिव अशोक कुमार सिंह, प्रो. आशीष शुक्ला एवं गीता शोध संस्थान के सीपी सिकरवार का विशेष सहयोग रहा। कार्यक्रम के अंत में डॉ. सुनीता पचार ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन उपपुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. शिव सिंह ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में सभी पुस्तकालय विभाग के सदस्यों का भी विशेष योगदान रहा।