सियालदह : कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर से रेप-मर्डर मामले में दोषी संजय रॉय को उम्रकैद देने वाले जस्टिस अनिर्बान दास ने पुलिस और हॉस्पिटल के लिए सख्त कमेंट किए। जस्टिस दास ने कहा कि इस केस में पुलिस लापरवाह थी।

उन्होंने सोमवार (20 जनवरी) को सजा सुनाने के दौरान ये भी कहा कि इस केस में ताला पुलिस स्टेशन के SI का बयान चौंकाने वाला है। वह दिखाता है कि पुलिस अफसरों ने इस केस में किस तरह लापरवाही बरती।

उम्रकैद के फैसले पर उन्होंने कहा- ज्यूडिशियरी का काम सबूतों के आधार पर न्याय देना है, जनता की भावनाओं के आधार पर नहीं। हमें आंख के बदले आंख और जान के बदले जान के भाव से ऊपर उठना चाहिए।

कोलकाता में 8 अगस्त 2024 की रात आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर का रेप और मर्डर हुआ था। 9 अगस्त को बॉडी मिली थी। जस्टिस दास ने फैसले में कहा था कि मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस की कैटेगरी में नहीं आता है, इसलिए फांसी की सजा नहीं दी जा सकती।

पहले देखिए सियालदह सेशन कोर्ट की ऑर्डर कॉपी का वह हिस्सा, जिसमें लिखा है संजय को फांसी की सजा क्यों नहीं दी गई…

फैसले के दौरान जस्टिस अनिर्बान के 6 कमेंट

1. गलत काम को कोर्ट में शान से बताया

जस्टिस अनिर्बान ने कहा, “9 अगस्त को जो जनरल डायरी SI ने बनाई उसमें सुबह 10 बजे का टाइम स्टैम्प था। जबकि उस वक्त पुलिस स्टेशन में भी, अफसर नहीं थे। चौंकाने वाली बात यह है कि अफसर विटनेस बॉक्स में आकर अपने गैरकानूनी काम को शान से बता रहा है। यह बताता कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर अफसरों ने किस तरह से काम किया। SI ने बताया कि उससे ऐसा करने को कहा गया था, लेकिन उसने किसी का नाम नहीं लिया। मैं ऐसे काम की निंदा करता हूं।”

2.ASI आरोपी की देखभाल कर रहे थे

जस्टिस अनिर्बान बोले, “असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर अनूप दत्ता आरोपी की देखभाल कर रहे थे और इंस्पेक्टर रूपाली दत्ता आरोपी का मोबाइल पुलिस स्टेशन में ऐसे ही छोड़ आईं। हालांकि, ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो बताता हो कि मोबाइल से छेड़छाड़ हुई।”

3. पीड़ित के परिवार को पर्दे में क्यों रखा गया

जस्टिस अनिर्बान ने पूछा, “पीड़ित के परिवार को पहले कम्पलेंट करने की सलाह क्यों नहीं दी। इसका कोई जवाब पुलिस के पास नहीं है। उन्हें कम्पलेंट दर्ज करने से पहले घंटों इंतजार क्यों करवाया गया। पीड़ित परिवार को इधर-उधर क्यों भागना पड़ा। ताला पुलिस स्टेशन ने सबकुछ पर्दे में क्यों रखा।”

4. पुलिस कमिश्नर को सख्ती दिखानी चाहिए

जस्टिस ने कहा कि ऐसे मामलों में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को सख्ती दिखानी चाहिए। गैरकानूनी और लापरवाही की ऐसी हरकतों के बाद किसी को भी बचना नहीं चाहिए। ऐसे केस में जांच के लिए अफसरों को प्रॉपर ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिए। ये ऐसा केस था, जिसमें सबकुछ हालात, इलेक्ट्रॉनिक और साइंटिफिक सबूतों पर टिका हुआ था। अगर पुलिस स्टेशन शुरुआत से इस केस को गंभीरता से लेता तो ये मामला इतना उलझता नहीं।

5. अस्पताल रेप-मर्डर को सुसाइड बताता रहा

जस्टिस अनिर्बान बोले, “आरजी कर अस्पताल पीड़ित की मौत को सुसाइड बताता रहा। उनका ये गैरकानूनी सपना इसलिए नहीं पूरा हो पाया, क्योंकि जूनियर डॉक्टर्स ने प्रोटेस्ट शुरू कर दिया था। अस्पताल की वजह से ही इस केस की जांच में देरी हुई। इसका कोई कारण नहीं बताया गया कि विक्टिम की मौत के बाद पेरेंट्स को उनकी बेटी को देखने के लिए लंबा इंतजार कराया गया।”

6. अस्पताल प्रशासन ने शक पैदा किया

उन्होंने कहा, “सबूत बताते हैं कि अस्पताल ने पुलिस को भी सही तरीके से कुछ नहीं बताया। अस्पताल के प्रशासनिक मुखिया की हरकतों ने शक पैदा किया। ऐसा लगा कि वो कुछ छिपाना चाहते थे। उन्होंने अपने काम में लापरवाही बरती। हालांकि, इन लापरवाहियों का असर केस पर नहीं पड़ा। “

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