नई दिल्ली : पतंजलि आयुर्वेद और योग गुरु स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का केस बंद कर दिया है।
कोर्ट ने दोनों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए कुछ भी करते हैं, जैसा कि पहले हुआ था, तो कोर्ट कड़ी सजा देगा।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने मंगलवार (13 अगस्त) को फैसला सुनाया। 14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना नोटिस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई की थी, जिसमें कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी की बदनामी का आरोप लगाया गया था।
पांच पॉइंट में पूरा मामला समझें
- अवमानना का यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर 17 अगस्त 2022 को शुरू हुआ था। यह पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ थी। पतंजलि ने एलोपैथी को बेअसर बताते हुए कुछ बीमारियों के इलाज का दावा किया गया था।
- सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाइयों और फटकार के बाद पतंजलि ने नवंबर 2023 में आश्वासन दिया था कि वह ऐसे विज्ञापनों से दूर रहेगा।
- फरवरी 2024 में पतंजलि के मिसलीडिंग एड जारी रहने के बाद कोर्ट ने पतंजलि और उसके एमडी को अवमानना नोटिस जारी किया।
- मार्च 2024 में अवमानना नोटिस का जवाब नहीं मिलने पर कोर्ट ने पतंजलि के एमडी बालकृष्ण और बाबा रामदेव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया।
- अप्रैल 2024 में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण कोर्ट में पेश हुए और वचन का उल्लंघन करने और एलोपैथिक दवाओं पर टिप्पणी करने के लिए बिना शर्त माफी मांगी।
कोर्ट ने पूछा था- क्यों न अवमानना का केस चलाया जाए
सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2023 को कहा था पतंजलि आयुर्वेद ने आश्वासन दिया था कि अब से किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा, विशेष रूप से उसके प्रोडक्ट्स के विज्ञापन या ब्रांडिंग के दौरान। साथ ही दवाओं के असर का दावा करने या किसी भी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ कोई बयान किसी भी रूप में मीडिया को जारी नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि पतंजलि यह आश्वासन देने के लिए बाध्य है।
लेकिन, इसके बावजूद स्वामी रामदेव ने नवंबर 2023 में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जिसमें उन्होंने कोर्ट की पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कड़ी टिप्पणी पर बात की थी। पतंजलि के आश्वासन के बाद मीडिया में बयान देने से सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया था।
बाद में शोकॉज नोटिस देकर पूछा था कि उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज पेपर में माफी भी प्रकाशित कराई थी।