जोधपुर : राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने पाली जिले में दो मासूम भाई-बहन की हत्या और बच्ची से रेप के आरोपी को बरी कर दिया। आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस अनुरूप सिंघी की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन (पीड़ित) पक्ष आरोपी के खिलाफ कोई ठोस या परिस्थितिजन्य सबूत पेश नहीं कर सका।
हाईकोर्ट ने अर्जुनसिंह की अपील स्वीकार करते हुए 11 दिसंबर 2023 का फैसला रद्द कर दिया गया। अर्जुनसिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और मर्डर रेफरेंस को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि अर्जुनसिंह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।
ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी मौत की सजा
पाली के स्पेशल जज (पॉक्सो एक्ट) संख्या-3 ने 11 दिसंबर 2023 को इस केस में अर्जुनसिंह को हत्या के आरोप में मौत की सजा और एक लाख रुपए जुर्माना, पॉक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट ने मर्डर रेफरेंस (मौत की सजा की पुष्टि (Confirmation) के लिए) हाईकोर्ट को भेजा था। उधर, अर्जुनसिंह ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी।
ये है मामला
पाली जिले के सिरियारी थाना क्षेत्र के एक गांव के 13 साल के किशोर और 10 साल की बच्ची के शव जंगल में मिले थे। 1 मई 2023 को दोनों बच्चे दोपहर में बकरियां चराने गए थे, लेकिन शाम तक घर नहीं लौटे। पिता और चाचा को 3 मई की सुबह करीब 7:30 बजे झाड़ियों में किशोर का शव मिला। इससे करीब 400 मीटर दूर बिना कपड़ों के बच्ची का शव मिला था। इस मामले में पुलिस ने 9 मई को अर्जुनसिंह को गिरफ्तार किया था।
बचाव पक्ष के तर्क, झूठा फंसाया
अर्जुनसिंह के वकील ने दलील दी कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य अधूरे हैं और पूरी श्रृंखला नहीं बनाते। न तो बच्चों के पिता ने और न ही चाचा ने एफआईआर या बयान में अर्जुनसिंह का नाम लिया। गिरफ्तारी का आधार स्पष्ट नहीं है। जांच अधिकारी प्रवीण नायक यह नहीं बता सके कि अर्जुनसिंह संदेह के दायरे में कैसे आया।
बरामदगी के दस्तावेज में कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था, केवल पुलिस अधिकारियों के हस्ताक्षर थे। लोहे की कुदाल तेज धार वाला हथियार है, जबकि मृत्यु का कारण सिर पर कुंद चोट बताया गया।
डीएनए जांच विशेषज्ञ को गवाह के रूप में पेश नहीं किया गया, इसलिए डीएनए रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं है। एफएसएल रिपोर्ट भी अनिर्णायक है और अपराध सिद्ध नहीं करती।

आरोपी ने राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर में दायर की थी अपील।
हाईकोर्ट ने कहा- साक्ष्य में पंचशील सिद्धांत लागू
हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामले में पंचशील सिद्धांत लागू होते हैं। शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पांच शर्तें निर्धारित की थीं, जिन्हें पूरा करना आवश्यक है।
- कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने में विफल रहा कि अर्जुनसिंह को क्यों, कैसे और किस आधार पर संदिग्ध माना गया। 9 मई तक घटना और आरोपी के बीच कोई संबंध, कड़ी या संपर्क नहीं था। केवल गिरफ्तारी के बाद कपड़ों और हथियार की बरामदगी पर मामला खड़ा किया गया।
- कोर्ट ने कहा कि बरामदगी किसी स्वतंत्र गवाह की उपस्थिति के बिना हुई और केवल दो अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में हुई, जो स्टॉक गवाह (खुद के) हैं। बिजेंदर बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बरामदगी निर्विवाद होनी चाहिए और संदेह के तत्वों से घिरी नहीं होनी चाहिए।
- एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले पुलिस स्टेशन पर दो स्वतंत्र गवाहों को बुलाना चाहिए था। उनकी उपस्थिति में आरोपी को बयान देना चाहिए था। यह पंचनामा का पहला भाग है। उसके बाद उस स्थान पर जाना चाहिए और बरामदगी करनी चाहिए, जो दूसरा भाग है। यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
- एफएसएल रिपोर्ट के पैरा 29 में स्पष्ट रूप से दर्ज है कि लोहे की कूंट पर खून नहीं मिला। कॉन्स्टेबल सुरेश चौधरी ने कहा कि हथियार पर खून था, लेकिन एफएसएल में खून नहीं मिला। यह उसकी गवाही पर संदेह पैदा करता है।
- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार मौत का कारण कुंद वार (blunt force) से सिर पर चोटें हैं, जबकि आयरन कूट तेज धार वाला हथियार है। यानी, यह हथियार मर्डर के लिए उपयोग नहीं किया गया।
पेड़ की डालियां काटने का झगड़ा साबित नहीं
अभियोजन के अनुसार हत्या का मकसद यह था, कि लड़के से पेड़ की डालियां काटने को लेकर झगड़ा हुआ। लेकिन मौका नक्शा में कोई कटी हुई डालियां नहीं मिली। लड़का 13 साल का था और अर्जुन 22 साल का था। यह संभव नहीं है कि लड़के ने इतना प्रतिरोध किया कि अर्जुन को उसकी जान लेनी पड़ी।
अभियोजन ने कहा कि बच्ची घटना की चश्मदीद थी, इसलिए सबूत नष्ट करने के लिए रेप और हत्या की गई। यह केवल परिकल्पना है, कोई सबूत नहीं। स्टेट (दिल्ली एडमिन) बनाम गुलजारीलाल और शंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मकसद के पूर्ण अभाव से आरोपी के पक्ष में वजन बढ़ता है।

