नई दिल्ली : पंजाब में किसान अपनी टमाटर की फसल मंडी में 5 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेच रहे हैं, जबकि बाजार में टमाटर का भाव 80 से 100 रुपए किलो तक पहुंच गया है। किसानों को टमाटर की फसल में केवल 2.5 से 4 रुपए का ही फायदा हो रहा है। किसानों का कहना है कि वे अपनी फसल की डायरेक्ट मार्केटिंग नहीं कर पाते हैं, जिसका आढ़ती फायदा उठाते हैं और उनकी फसल को कम कीमत पर खरीदते हैं। किसानों ने टमाटर केवल 2.5 रुपये प्रति किलो बेचा क्योंकि उन्होंने कंपनियों के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे।

एक महीने बाद की विडंबना देखिए। किसानों से 5 रुपए किलो टमाटर खरीदने की खबर लिखने वाले न्यूजरूम के एक साथी कल बाजार से 110 रुपए किलो टमाटर खरीदकर लाए। सब्जी वाले ने उन्हें 10 रुपए डिस्काउंट देने का एहसान भी जता दिया।

कहा जा रहा है कि टमाटर की कीमतों में अचानक उछाल मानसून और बारिश की वजह से आई है। इस मौसम में टमाटर की कीमतें हर साल बढ़ती हैं। जानकारी के मुताबिक अब जब पंजाब में टमाटर की फसल लगभग खत्म हो गई है और यहां के अधिकांश किसान धान की बुआई के लिए चले गए हैं, तो टमाटर का बाजार मूल्य 25-30 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। किसानों को अब लगता है कि अगर टमाटर या अन्य मौसमी किस्मों के लिए कोई भंडारण सुविधा या प्रसंस्करण इकाइयां होतीं, तो उनकी फसल को अब बेहतर कीमत मिल सकती थी।

जिनकी वजह से टमाटर के दाम आसमान छू रहे हैं…

  • जानकारी के मुताबिक टमाटर की मौजूदा महंगाई की सबसे बड़ी वजह भारी बारिश है। टमाटर जल्दी खराब होने वाली सब्जी है। इसलिए इसकी निरंतर सप्लाई जरूरी है। पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक, तेलंगाना समेत दक्षिणी राज्यों के साथ कुछ पहाड़ी राज्यों में भी भारी बारिश हुई है। इससे टमाटर की फसल को नुकसान पहुंचा है और सप्लाई में बाधा आई है।
  • दिल्ली की आजादपुर थोक मंडी में टमाटर व्यापारी अशोक गनोर ने बताया कि जमीन पर मौजूद टमाटर के पौधे हाल की बारिश के दौरान क्षतिग्रस्त हो गए थे। सिर्फ वे पौधे जो तारों के सहारे खड़े होते हैं, बच गए। यानी फसलों को नुकसान होने से सप्लाई प्रभावित हुई इसलिए कीमतें बढ़ गई हैं।
  • रबी के सीजन यानी दिसंबर-जनवरी में बोए गए टमाटर की फसल पर इस बार गर्मी की मार पड़ी। दक्षिण भारत में इसकी वजह से टमाटर में लीफ कर्ल वायरस से उसकी फसलों को काफी नुकसान हुआ। महाराष्ट्र में सर्दी कम पड़ने और मार्च-अप्रैल में अत्यधिक गर्मी की वजह से ककड़ी वायरस के हमले देखे गए। इस वजह से टमाटर के पौधे सूख गए।
  • कर्नाटक के कोलार में मंडी चलाने वाले सीआर श्रीनाथ कहते हैं कि राज्य में व्हाइट फ्लाई कीट के चलते टमाटर की फसल को नुकसान हुआ। इससे टमाटर की सप्लाई में कमी आई।
  • इस साल मार्च-अप्रैल में टमाटर की खेती से जुड़े किसानों को झटका लगा। थोक बाजार में मार्च में टमाटर की औसत कीमत 5 से 10 रुपए किलो थी। वहीं अप्रैल में यह लगभग 5 से 15 रुपए प्रति किलो थी। मई में किसानों को 2.50 से 5 रुपए प्रति किलो के बीच बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा।
  • सतारा जिले के फलटन तालुका के मिरेवाडी गांव के टमाटर उत्पादक अजीत कोर्डे ने कहा कि कीमतों में कमी की वजह से कई किसानों ने अपनी फसलें खेत में ही छोड़ दीं। इससे मार्केट में कम टमाटर आए।
  • पिछले दो साल से नुकसान झेल रहे किसानों ने इस बार टमाटर की बुआई कम की। वेजिटेबल ट्रेडर्स एसोसिएशन के महासचिव अनिल मल्होत्रा ​​ने कहा कि 2020 और 2021 में टमाटर की बंपर फसल हुई और कम कीमत की वजह से किसानों को अपनी उपज डंप करनी पड़ी।
  • इस वजह से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में किसानों ने इस साल टमाटर के उत्पादन में कटौती की और फूल उगाए। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों की तुलना में इस बार टमाटर का उत्पादन आधा हो गया।
  • कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया कहते हैं कि कर्नाटक में किसानों ने बीन्स के लिए टमाटर का त्याग कर दिया। कर्नाटक के कोलार में टमाटर किसान अंजी रेड्‌डी ने बताया कि कोलार में कई किसानों ने इस साल बीन्स की खेती की, क्योंकि पिछले साल बीन्स ने काफी ज्यादा मुनाफा दिया था। ऐसे में जिले में टमाटर की फसल सामान्य से केवल 30% ही हो सकी।

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