दैनिक उजाला, मथुरा : शाही ईदगाह के सर्वे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि अगले आदेश तक सर्वे पर रोक जारी रहेगी।

दरअसल, 14 दिसंबर, 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार करते हुए परिसर का सर्वे कराने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश दिया था।

इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 16 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगाई। आज चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच में मामले की सुनवाई हुई।

पीठ ने कहा कि वह मस्जिद परिसर के अदालत की निगरानी में सर्वेक्षण के खिलाफ ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह प्रबंधन समिति की याचिका पर सुनवाई एक अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी।

सीजेआई संजीव खन्ना ​​​​​ने कहा कि शीर्ष अदालत में अभी तीन मुद्दे लंबित हैं। इनमें एक अंतर-न्यायालय अपील का मुद्दा (हिंदू वादियों द्वारा दायर मुकदमों के समेकन के खिलाफ), दूसरा अधिनियम (पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को चुनौती) शामिल है।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान शाही ईदगाह विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान शाही ईदगाह विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।

शाही ईदगाह पक्ष नहीं चाहता कि मस्जिद का सर्वे हो

पीठ ने कहा- इस दौरान शाही ईदगाह मस्जिद परिसर के न्यायालय की निगरानी में सर्वेक्षण पर रोक लगाने वाला इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश लागू रहेगा।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान शाही ईदगाह मामले में वाद दाखिल करने वाले वादी एवं अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि सर्वे होने से तथ्य सामने आएंगे। सर्वे क्यों जरूरी है इसको लेकर आगामी सुनवाई में अपनी बात रखेंगे। शाही ईदगाह पक्ष नहीं चाहता कि मस्जिद का सर्वे किया जाए।

क्या है पूरा विवाद?

यह पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है। 11 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण मंदिर है और 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष इस 2.37 एकड़ जमीन पर जन्मभूमि होने का दावा करता रहा है। 1670 में औरंगजेब के शासन में यहां शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई थी।

1944 में ये पूरी जमीन उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली। 1951 में उन्होंने श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बनाया, जिसे ये जमीन दे दी गई। ट्रस्ट के पैसे से 1958 में नए सिरे से मंदिर बनकर तैयार हुआ। फिर एक नई संस्था बनी, जिसका नाम रखा गया श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान। इस संस्था ने साल- 1968 में मुस्लिम पक्ष से समझौता किया कि जमीन पर मंदिर-मस्जिद दोनों रहेंगे। हालांकि, इस समझौते का न तो कभी कानूनी वजूद रहा और न ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट ने इस समझौते को कभी माना।

हिंदू पक्ष अब इस मस्जिद को हटाने की मांग करता है तो वहीं मुस्लिम पक्ष प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की दलील देता है।

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