• गुरू पूर्णिमा पर बलदेव थानाध्यक्ष ने नहीं लिया कोई जायजा, नगरवासियों के साथ नहीं की कोई बैठक
  • डीएम, एसडीएम और विधायक ने भी नहीं ली नगरवासियों की मांग की सुध, लाखों श्रद्धालु रहे रामभरोसे

बलदेव: अवसर था गुरू पूर्णिमा यानि मुड़िया पूनौ का। इस अवसर पर जाहिर सी बात है कि भगवान श्रीकृष्ण के बडे़ भ्राता बलराम जी के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु बलदेव नगर पहुंचेंगे। हुआ भी यही। गुरू पूर्णिमा के अवसर से दो दिन पूर्व से ही श्रद्धालुओं की अच्छी संख्या देखी गयी। पूर्णिमा के अवसर तो यह संख्या लाखों में देखी गयी, लेकिन इन श्रद्धालुओं की सुरक्षा प्रशासन और पुलिस ने रामभरोसे छोड़ दी। यही कारण रहा कि सोमवार को मंदिर में दो महिलाओं के मंगलसूत्र पार करने की खबर सामने आयी। इसके बाद भी पुलिस महिलाओं फटकाकर भगा दिया।

सोमवार को तो गुरू पूर्णिमा के अवसर पर मंदिर खुलने से पूर्व ही सुबह करीब 3 बजे से ही मंदिर के सभी द्वारों की श्रद्धालुओं का लंबा रैला देखा गया। सुबह 4 बजे और मंदिर खुलते यह रैला मंदिर प्रांगण में उमड़ पड़ा, जो कि दोपहर तक उमड़ता रहा। इस दौरान सबसे बड़ी खास बात यह देखी गयी कि न तो जिला स्तर से कोई प्रशासनिक अधिकारी ही श्रद्धालुओं सुरक्षा को परखने के लिए मंदिर अथवा बलदेव नगर नहीं पहुंचा। इसके अलावा बलदेव थानाध्यक्ष ने भी नगरवासियों और मंदिर प्रशासन के साथ कोई मीटिंग तक नहीं की और लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा रामभरोसे छोड़ दी। रजवाहा से लेकर मंदिर प्रांगण तक मात्र दो पुलिसकर्मी व्यवस्था को संभाले हुए थे। दोपहर बाद इन दो पुलिस कर्मियों ने श्रद्धालुओं की व्यवस्था को छोड़ दिया।

रामभरोसे सुरक्षा के चलते हुआ ये कि भारी भीड़ में दो महिलाओं के मंगलसूत्र चोरों ने पार कर दिए। मंगलसूत्र और कुंडल तोडे़ जाने की जानकारी देती हुईं मधु पत्नी सुमित निवासी खडैया, सेंदरा खंदौली आगरा ने बताया कि सुबह करीब 11 बजकर 30 मिनट पर मंदिर में दर्शन करते समय किसी ने कुंडल और मंगलसूत्र तोड़ लिया। जिसकी जानकारी बाहर निकलने के बाद हुई। इस मामले की शिकायत लेकर थाने पहुंचे तो पुलिस ने चलता कर दिया। एक नहीं सुनी।

इसके बाद गहचौळी सादाबाद निवासी मालती देवी पत्नी मोरमुकुट ने बताया कि दोपहर करीब 12 बजे उनके गले से किसी ने मंगलसूत्र तोड़ लिया। इसकी शिकायत बलदेव पुलिस से की, लेकिन पुलिस ने कहा कि जाइये बाद में देखेंगे। यानि हालात ये रहे कि बलदेव पुलिस पीड़ितों की सुनने को भी तैयार नहीं थी। सोचने को भी यह विषय मजबूर करता है कि जिस पुलिस ने पीड़ितों की नहीं सुनी सुरक्षा व्यवस्था को तो रामभरोसे छोड़ने के लिए खुद आतुर दिखेगी। हुआ भी यही।

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