दिल्ली : ‘ऑपरेशन सिंदूर के बाद से साउथ एशिया की राजनीति काफी बदल रही है। पिछले कुछ सालों में चीन की मदद से पाकिस्तान ने खुद को बेहतर किया है। लिहाजा भारत, पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है। अब अफगानिस्तान के करीब आने से साउथ एशिया में भारत की स्थिति मजबूत होगी।’

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के भारत दौरे को तुर्किये की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ओमैर अनस काफी उम्मीदों भरा बता रहे हैं। तालिबानी विदेश मंत्री आज से 16 अक्टूबर तक भारत दौरे पर हैं। मुत्तकी यूनाइटेड नेशंस की सिक्योरिटी काउंसिल में प्रतिबंधित आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल हैं। इसलिए उन्हें भारत आने के लिए विशेष छूट लेनी पड़ी है।

भारत दौरे से पहले अफगानी मंत्री रूस की राजधानी मॉस्को भी पहुंचे। यहां वे ‘मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन’ की बैठक में शामिल हुए, जिसमें भारत उनके सपोर्ट में दिखा। भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस प्लान का विरोध किया है, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान से बगराम एयरबेस वापस लेने की बात कही थी। इस मुद्दे पर पाकिस्तान, चीन और रूस ने भी भारत का सपोर्ट किया।

हालांकि रूस के अलावा भारत समेत किसी भी देश ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। अब अफगान मंत्री के भारत दौरे से क्या बदलेगा? भारत के लिए ये दौरा किस तरह फायदेमंद होने वाला है। अफगानिस्तान के लिए कैसे पाबंदियां कम हो सकती हैं। तुर्किये की अंकारा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ओमैर अनस और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार राजन राज से बात कर हमने यह समझने की कोशिश की।

मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन की बैठक 7 अक्टूबर 2025 को मॉस्को में हुई थी, जिसमें तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भी शामिल हुए।

मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन की बैठक 7 अक्टूबर 2025 को मॉस्को में हुई थी, जिसमें तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भी शामिल हुए।

तालिबान सरकार को मान्यता देने पर हो सकती है बात

2021 में अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने और तालिबान की सरकार बनने के बाद भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया। तब से दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक रिश्ता नहीं रहा। भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को ऑफिशियली मान्यता भी नहीं दी है। हालांकि भारत लंबे वक्त से अफगानिस्तान के साथ बैकडोर डिप्लोमेसी करता रहा है।

अब तालिबान सरकार के करीब 5 साल के शासन के बाद विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भारत दौरे पर हैं। दौरे का एजेंडा जानने के लिए हमने अफगानिस्तान में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मैसेज और कॉल का जवाब नहीं दिया।

विदेश मंत्रालय के सोर्स बताते हैं कि मुत्तकी की दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात हो सकती है। दोनों के बीच अफगानिस्तान में मानवीय सहायता, वीजा, व्यापारियों के लिए सुविधा और अफगान नागरिकों के मामले उठाए जा सकते हैं।

वहीं ड्राय फ्रूट एक्सपोर्ट, चाबहार-रूट, पोर्ट-लिंक, रीजनल सिक्योरिटी और आतंकवाद पर रोक (खासकर TTP के मद्देनजर) समेत अफगान सरकार की अंतरराष्ट्रीय मान्यता जैसे मुद्दों पर भी बात हो सकती है।

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इसी साल जनवरी में अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की थी।

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इसी साल जनवरी में अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की थी।

हमारे रिश्ते ऐतिहासिक, हमेशा दोनों एक दूसरे के साथ

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार तुर्किये की अंकारा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ओमैर अनस कहते हैं कि भारत और अफगानिस्तान हमेशा से एक दूसरे के लिए अहम पड़ोसी रहे हैं। जब भारत के दो हिस्से नहीं हुए थे, उस वक्त अफगानिस्तान हमारा पड़ोसी था। ऐतिहासिक तौर पर देखें तो अफगानिस्तान हमेशा भारत के साथ रहा है।

ऐसे बहुत कम मौके रहे जब अफगानिस्तान और भारत के बीच संबंध बिगड़े हों। अफगानिस्तान में जब कभी आंतरिक संघर्ष रहा, तब भारत ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया है।

क्या अब तालिबान सरकार को गंभीरता से ले रहा भारत

इसका जवाब में इंटरनेशनल मामलों के एक्सपर्ट और स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज JNU में एसोसिएट प्रोफेसर राजन राज कहते हैं कि भारत के साथ अफगानिस्तान की तालिबान सरकार की जो बातचीत शुरू हुई है, वो कई मायनों में अहम है। भले ही भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, लेकिन बातचीत और मंत्रियों के दौरे हो रहे हैं।

वे कहते हैं,

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इससे साफ संदेश जाता है कि भारत अब तालिबान सरकार को गंभीरता से ले रहा है और उसे अफगानिस्तान के प्रतिनिधि संस्था के तौर पर स्वीकार कर रहा है। भारत को ये अंदाजा हो गया है कि तालिबान अफगानिस्तान में लंबे वक्त तक रह सकता है इसलिए उनके साथ बातचीत जरूरी है।QuoteImage

’अब ऐसा लग रहा है कि अफगानिस्तान में आंतरिक संघर्ष खत्म हो चुका है और तालिबान की सत्ता को स्वीकार कर लिया गया है। अब ऐसा तालिबान सत्ता में आया है, जो करीब-करीब सारे गुटों को साथ लेकर चल रहा है। इससे पहले हामिद करजई की सरकार थी। उसके बारे में यही कहा जाता था कि वो काबुल के चेयरमैन हैं, उससे ज्यादा कुछ नहीं। बाकी पूरे देश पर तालिबान का ही कब्जा हुआ करता था।’

वहीं प्रोफेसर ओमैर अनस कहते हैं कि इसके पहले की सरकार अफगानिस्तान में लोकप्रिय नहीं थी। उसकी पश्चिमी देशों पर निर्भरता ज्यादा थी। इसी वजह से पड़ोसी देश जैसे पाकिस्तान के पास मौका रहा कि वो अफगानिस्तान के अंदरूनी संघर्ष में अपना फायदा उठाएं। जब से तालिबान की सरकार आ गई, तब से अब एक मजबूत अफगानिस्तान हमारे सामने है।

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