श्रीनगर : देशभर में आज ईद-उल-अजहा यानी बकरीद मनाई जा रही है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर में भी लोगों ने मस्जिदों में नमाज अदा की। हालांकि, श्रीनगर की जामा मस्जिद लगातार सातवें साल ईद-उल-अजहा पर बंद रही। 2019 में आर्टिकल 370 हटने के बाद सुरक्षा कारणों से जामा मस्जिद पर ताला लगा है।

-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, ‘मुझे जामा मस्जिद बंद रखने के फैसले का आधार नहीं पता, लेकिन हमें अपने लोगों पर भरोसा करना सीखना होगा। ये वही लोग हैं, जिन्होंने पहलगाम हमले का विरोध किया था। केंद्र को ऐतिहासिक जामा मस्जिद में नमाज की अनुमति देने के बारे में सोचना चाहिए।’

जम्मू-कश्मीर की पूर्व CM और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की चीफ महबूबा मुफ्ती ने भी मस्जिद बंद रखने के फैसले पर सवाल उठाए। पूर्व सीएम ने कहा, ‘ईद के दिन जामा मस्जिद पर ताला लगाया गया है। यह हमारे मजहब के खिलाफ है। CM उमर अब्दुल्ला को नजरबंद किया गया है। अगर सब ठीक है तो ये सब क्यों किया जा रहा है।’

बकरीद पर लगातार 7वें साल श्रीनगर की जामा मस्जिद में लोगों की एंट्री बंद रही।

बकरीद पर लगातार 7वें साल श्रीनगर की जामा मस्जिद में लोगों की एंट्री बंद रही।

2018 में नकाबपोश युवकों ने मस्जिद पर ISIS का झंडा लगाया था

श्रीनगर की जामा मस्जिद में 28 दिसंबर 2018 को, शुक्रवार यानी जुमे की नमाज़ के बाद कुछ नकाबपोश युवकों ने ISIS के झंडा लगा दिया था। घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, जिसकी काफी आलोचना हुई थी।

5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटने के बाद सरकार ने जामा मस्जिद में नमाज पर रोक लगा दी थी। मस्जिद बंद करने के पीछे COVID-19 महामारी को भी एक कारण बताया गया था।

छह फोटो में देखिए श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद

1404 में बनकर तैयार हुई थी जामा मस्जिद श्रीनगर के नौहट्टा में जामा मस्जिद पूरे जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी मस्जिद है। इसे शुक्रवार मस्जिद भी कहा जाता है। इसका निर्माण सुल्तान सिकंदर शाहमीरी ने 1394 में करवाना शुरू किया। 1404 में यह बनकर तैयार हुई थी।

मस्जिद को पुराने समय में बहुत बार विवादों के कारण नष्ट कर दिया गया था और हर बार पुनर्निर्माण किया जाता रहा। आखिरी बार महाराजा प्रताप सिंह ने इसे अपने देखरेख में बनवाया था और तबसे अभी तक ठीक ठाक है।

1820 से लेकर 1846 तक महाराजा रणजीत सिंह के शासन के वक्त इसे बंद कर दिया गया था। 2018 में लगभग 250 साल बाद इसकी मरम्मत की गई थी। 2019 में आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद से यह मस्जिद बंद है।

यह मस्जिद भारतीय और मुगल कलाकृति पर बनी है। इसकी वास्तुकला को ब्रिटिश वास्तुकारों ने डिजाइन किया था, जिसे इंडो-सारासेनिक वास्तुकला कहा जाता है। मस्जिद में एक साथ 33333 लोग नमाज पढ़ सकते हैं। मस्जिद का प्रार्थना हॉल 370 खभों पर खड़ा हुआ है। ये सभी खंभे देवदार के मोटे तनों से बने हैं।

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