दैनिक उजाला, संवाद मथुरा : सुप्रीम कोर्ट में अब न्याय की देवी की प्रतिमा बदल गई है। आजादी के 75 वर्ष बाद न्याय की प्रतीक लेडी लेडी ऑफ जस्टिस की प्रतिमा को सुप्रीम कोर्ड की लाइब्रेरी से हटाकर नई प्रतिमा को स्थान दे दिया गया है। इस नई प्रतिमा में आंख से पट्टी हटाई गई है तो हाथों में तलवार की जगह संविधान दिया गया है। इस प्रतिमा को मथुरा के नंदगांव के रहने वाले प्रोफेसर और उनकी टीम ने बनाया है।

सुप्रीम कोर्ट की जज लाइब्रेरी में लगी जस्टिस ऑफ लेडी की प्रतिमा में कई बदलाव किए गए हैं। इस प्रतिमा की आंखों से पट्टी हटा दी गई है तो हाथों में तलवार की जगह संविधान दे दिया गया है। इसका अर्थ है कि न्याय संविधान के मुताबिक होगा। इसके साथ ही न्याय की देवी को पश्चिमी लिबास की जगह भारतीय परिधान साड़ी पहनाई गई है। जो भारतीय संस्कृति की पहचान को दर्शाता है।

न्यायिक अधिकारियों के साथ प्रोफेसर विनोद गोस्वामी और उनकी टीम के सदस्य

न्यायिक अधिकारियों के साथ प्रोफेसर विनोद गोस्वामी और उनकी टीम के सदस्य

मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर बदली प्रतिमा

सुप्रीम कोर्ट की जज लाइब्रेरी में लगी प्रतिमा को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के आदेश के बाद लगाया गया है। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि भारत में कानून अंधा नहीं है। मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर इस प्रतिमा को मथुरा के नंदगांव में स्थित नंदबाबा मंदिर के पुजारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रोफेसर विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने बनाया है।

विनोद गोस्वामी मथुरा के नंदगांव के रहने वाले हैं

विनोद गोस्वामी मथुरा के नंदगांव के रहने वाले हैं

100 किलो है प्रतिमा का वजन

नई दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रोफेसर विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने इस प्रतिमा को तैयार करने से पहले 6 महीने तक इसकी ड्राइंग तैयार की। इसके बाद फाइबर ग्लास में करीब 100 किलो वजन से इसे तैयार किया। सफेद संगमरमर जैसी दिखने वाली इस बेहद खूबसूरत मूर्ति को अप्रैल 2023 में तैयार किया गया।

सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई नई न्याय की देवी की प्रतिमा बेहद ही आकर्षक है

सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई नई न्याय की देवी की प्रतिमा बेहद ही आकर्षक है

शनिदेव की माता से मिली प्रेरणा

प्रोफेसर विनोद गोस्वामी ने बताया कि उनको यह प्रतिमा बनाने की प्रेरणा शनिदेव की माता छाया से मिली। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। शनिदेव की माता छाया उनकी गुरु हैं। यही वजह रही कि उन्होंने इस प्रतिमा को बनाने के लिए शनिदेव की माता छाया से प्रेरणा ली।

इस ऐतिहासिक प्रतिमा को बनाने में करीब 6 महीने का समय लगा। इस प्रतिमा को बनाकर विनोद गोस्वामी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इसके लिए वह मुख्य न्यायाधीश का आभार जताते हैं।

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