ब्रज में बरसाना, नंदगांव, रावल, जन्मभूमि, ठाकुर बांके बिहारी मंदिर, गोकुल तथा फालैन होली के बाद ब्रजराज का भव्य और दिव्य हुरंगा आयोजित होता है। यह हुरंगा 15 मार्च को है। इस हुरंगे की अनूठी परंपरा है। यहां गोपिकाएं गोपों के कपड़े फाड़कर और उन्हें पानी में भिगोकर गोपों के नंगे बदन पर जमकर बरसाती हैं। गोपिकाओं के हाथों से कोड़ों की मार खाकर पांडेय समाज के गोप अपने आपको आनंदित महसूस करते हैं। इसी हुरंगे की दिव्यता को पांडेय समाज के एक व्यक्ति ने अपने फेसबुक वॉल पर उकेरा है। आइए जानते हैं।
श्री दाऊजी महाराज की असीम अनुकम्पा से आज हम सभी बृजवासी उस उन्मुक्त भाव रस में सराबोर है जिसके लिये देवगढ़ और देवराज इन्द्र अनेको ऋषि गण महात्मा उस रसास्वादन के लिये निरन्तर लालायित रहे परन्तु, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्राण रूपी बृजवासियों की लीला को इस अप्रमितम लीला में प्रवेश नही दिया और हम बृज वासियों को एक ऐसा फगुआ प्रदान किया, जिसके रंग में रंगने को हर प्राणी मात्र और देव मात्र लालायित प्रतीत पड़ता है मगर वो पियूष भी अपने केवल बृजवासियों को स्पर्श मात्र से धन्य मान आह्वादित होता रहता है।
बृज बासी बृूजअंगना बृजभूमि बृजराज !
इन चारो के मुकुट है श्री दाऊजी महाराज !!
ऐसा अनूठा दिव्य, आलोकिक, इंद्रधनुषी श्री दाऊजी महराज का हुरंगा हम दाऊजी के वासी उस पुनीत पियूष में सराबोर हो बृज गोपाँगनाओ की मीठी वो मार झेल कर अपने को धन्य समझते है। वो टेसुओ के फूल का रस अपने को गोपियों को स्पर्श कर धन्य समझता है और वो केसर का मिश्रण तो स्पर्श पाते ही फूला नही समाता और वो रंग मिश्रित इत्र अपनी मादक मुस्कान बिखेरता हुआ ऐसा प्रतीत पड़ता है मानो काम देव अपनी लीला हवा में बिखेर रहा हो और गुलाल की तो पूछो मत वह इठलाता हुआ कह रहा हो कि आज बृज होरी में प्रधानता के साथ में ही साक्षी बन इन्द्र को इंद्रधनुषी चुनौती बस मैं ही दे रहा हूँ ! ऐसा हुरँगा श्री दाऊजी महाराज और माँ रेवती जी की कृपा से हम कल्याण वंशज धन्य हुये गाते चलते है कि आज बुृज में होरी रे रसिया…
बृजआँगनाओ के मधुर स्वर ढप और मृदंग को चुनौती देते हुये गाती है जेसे देवाँगना गा रही हो लाला रे… तो ते होरी जब खेलूं मेरी पहुँची में नग जड़वाये… इस आलोकिक क्षण के साक्षी हुये अनेकों देश विदेश से आया जन समूह अपने को धन्य समझता है और गोपी गोपों में श्रीकृष्ण-बलराम और सखियों के दर्शन कर एक आस लिये जाता हुआ कहता है कि ऐसौ रस बरसें बृज बरसाने वो तीन लोक में नाय…



गोकुलेश पाण्डेय